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लकड़ी के पुल के सहारे नदी पार करना मजबूरी

रामपुर : सैदनगर ब्लाक के दर्जनभर से ज्यादा गांवों के लोगों की नैया लकड़ी के पुल के सहार

By JagranEdited By: Published: Sun, 15 Jul 2018 10:31 PM (IST)Updated: Sun, 15 Jul 2018 10:31 PM (IST)
लकड़ी के पुल के सहारे नदी पार करना मजबूरी
लकड़ी के पुल के सहारे नदी पार करना मजबूरी

रामपुर : सैदनगर ब्लाक के दर्जनभर से ज्यादा गांवों के लोगों की नैया लकड़ी के पुल के सहारे पार हो रही है, लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।

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देश को आजाद हुए सात दशक हो गए, लेकिन गांव के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे हैं। कीचड़ भरे रास्ते गांव की पहचान बने हैं। अच्छे स्कूलों की कमी है। स्कूलों में शिक्षकों के साथ सुविधाओं की कमी है, जिससे शिक्षा का स्तर नहीं उठ पा रहा है। कई गांव आज भी मोमबत्ती की रोशनी में जी रहे हैं। बिजली आज भी इनके लिए किसी सपने से कम नहीं है। जिले में कोई फैक्टरी नहीं है, जिससे युवाओं के सामने रोजगार की समस्या है। इसके अलावा भी क्षेत्रवासी कई समस्याओं से जूझ रहे हैं, जिनके समाधान की आस वह वर्षों से लगाए बैठे हैं। लालपुर पुल दो साल से टूटा पड़ा है। खौद की पुलिया दो साल से बन रही है, लेकिन काम पूरा नहीं हो पाया है। घूघा नदी पर पुल नहीं होने से क्षेत्र के लोगों को आवाजाही में दिक्कत होती है। बाढ़ आने पर हर साल पसियापुरा के लोग भी कैद होकर रह जाते हैं। या फिर जान जोखिम में डाल कर नदी पार करते हैं। सैदनगर ब्लाक में पीलाखार नदी बहती है। मिलकखानम को जोड़ने वाले मार्ग पर तो पुल बना है, लेकिन खिमोतिया और महुनागर, बढ़ईयों वाला मझरा, लल्लूपुरा, उस्मानगंज, पदपुरी, जटपुरा आदि समेत दर्जनभर से अधिक गांवों को जोड़ने वाले मार्ग पर पुल नहीं है। पुल न होने से ग्रामीण मिलकखानम या थूनापुर से होकर जिला मुख्यालय पहुंचते हैं। इससे समय के साथ धन की बर्बादी होती है। नदी पर पुल बनवाने के लिए लोगों ने अधिकारियों से लेकर जन प्रतिनिधियों तक दौड़ लगाई, लेकिन आश्वासन के सिवा आज ताज कुछ नहीं मिला। थक-हारकर यहां के वा¨शदों ने अपने स्तर से ही लकड़ी का पुल बना लिया है। दर्जनभर से ज्यादा गांवों के लोगों की ¨जदगी अब इसी लकड़ी के पुल के सहारे पार हो रही है। हालांकि इस पुल को पार करने के बदले में ग्रामीणों को टोल देना पड़ता है। बाइक सवार को पुल पार करने के बदले में दस, और साइकिल सवार लोगों को 5 रुपये चुकाने के बाद ही नदी पार होती है। उस्मानगंज के ताहिर का कहना है कि बाइक से पुल पार करने पर दस से बीस रुपये देने पड़ते हैं। महुनागर के रईस अहमद का कहना है कि साइकिल द्वारा पुल पार करने पर एक तरफ के पांच रुपये देने पड़ते हैं। पदपुरी निवासी के राम¨सह कहना है कि यह लोग पैदल नदी पार करने वालों से वसूली की जाती है। बढ़इयों वाला मझरा, महुनागर, लल्लूपुरा, उस्मानगंज, पदपुरी, खिमोतिया बख्ती, देवरनिया, जिठनिया, कुंडों की मढैया, जटपुरा आदि समेत दर्जनभर से अधिक गांवों के लोग लकड़ी के पुल के सहारे नदी पार कर रहे हैं। खिमोतिया के हाफिज मोहम्मद उमर का कहना है कि अगर यहां पर लौहे का छोटा पुल ही बना दिया जाए, तो लोगों को बहुत राहत मिलेगी। चुनाव के समय तो नेता बहुत बड़े-बड़े वादे करते हैं, और चुनाव के बाद सब भूल जाते हैं। प्रशासन भी इसकी सुध नहीं ले रहा है, जिसके चलते यहां के लोग नरकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।


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