भूख से मरने का था डर, इसलिए पैदल तय किया सैकड़ों किलोमीटर सफर
भूख से मरने का था डर इसलिए पैदल तय किया सैकड़ों किलोमीटर सफर
जागरण संवाददाता, मिलक : दो जून की रोटी कमाने के लिए अपना गांव छोड़कर शहर चले गए। लेकिन, कोरोना वायरस ने गांव लौटने के लिए मजबूर कर दिया। लाक डाउन हुआ तो शहर में काम बंद हो गया। फैक्ट्री मालिक ने बाहर निकाल दिया। खाने के भी लाले पड़ गए। कहीं भूख से न मर जाएं, इसी डर से वहां से गांव की ओर चल पड़े। रास्ते में धक्के खाते हुए कई सौ किलोमीटर का सफर तय किया। गांव पहुंचे तो गांव वाले भी घुसने नहीं दे रहे थे। काफी मिन्नते करने के बाद घर तक पहुंच सके। पगार भी नहीं दी
अपने परिवार में वह इकलौता कमाने वाला है। गांव के कुछ युवकों के साथ चार महीने पूर्व रोजगार की तलाश में वह हरियाणा के पलवल जिले गया था। वहां फैक्ट्री में मजदूरी करता था। लॉकडाउन की घोषणा के बाद फैक्ट्री बंद हो गई। फैक्ट्री मालिक ने इस महीने की पगार भी नहीं दी। वह लोग फैक्ट्री परिसर में बने सर्वेंट क्वार्टर में रहते थे। राशन-पानी खत्म होने पर फैक्ट्री मालिक ने किसी भी प्रकार की सहायता करने से इन्कार कर दिया। इनके आगे भूखों मरने की नौबत आ गई। घर जाने के लिए निकले तो वाहन नहीं मिले। मजबूरन पैदल ही चलने का फैसला किया। सैकड़ों किलोमीटर भूखे-प्यासे सफर तय करने के बाद अपने घर पहुंचे हैं। अब कभी भी हरियाणा मजदूरी करने नहीं जाएंगे। गांव पहुंचने पर गांव के लोग अंदर भी नहीं आने दे रहे थे। काफी गिड़गिड़ाने के बाद ही घर तक जाने दिया।
राकेश कुमार, निवासी ग्राम मनोना।
पुलिस ने लाठी मारी
हरियाणा के बाबल कस्बे में दिहाड़ी मजदूरी करता था। उसके साथ गांव का एक अन्य परिवार भी वहीं रहता था। लॉकडाउन के कारण बिल्डिग निर्माण कार्य बंद कर दिया गया। सभी मजदूरों से कहा गया कि वह अपने-अपने घर लौट जाएं। वह अपने साथियों के साथ घर जाने के लिए बस स्टैंड पहुंचा। वहां मौजूद पुलिस वालों ने हम लोगों पर लाठियां भांजीं, जिससे हमें चोटें भी आईं। पुलिसकर्मियों का कहना था कि हम लोग लॉकडाउन में बाहर क्यों निकले? पुलिस की मार खाने के बाद हम लोगों ने दूसरे रास्ते से पैदल ही घर जाने के लिए निकल पड़े। रास्ते में कुछ अच्छे पुलिस वाले भी मिले, जिन्होंने हमें बिस्किट खाने को दिए। तीन दिनों का लंबा सफर, एक बिस्किट के पैकेट के सहारे ही तय किया।
सुरेंद्र, ग्राम मनोना। बारिश में भी चलते रहे
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में चल रहे प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट ऑल वैदर रोड निर्माण कार्य में मजदूरी करता था। देश में लॉकडाउन लगाने के बाद प्रोजेक्ट का कार्य रोक दिया गया। सैकड़ों की संख्या में मजदूर काम बंद होने से वहां फंस गए। एक-दो दिनों में खाने-पीने का राशन भी खत्म हो गया। सभी मजदूर अपने -अपने घरों को पैदल चल दिए। उत्तराखंड में शुक्रवार को बूंदाबांदी और बारिश होने पर मौसम बेहद ठंडा हो गया था। हम लोग बारिश में भीगते हुए पैदल चलते रहे। हरिद्वार पहुंचने पर आश्रम में चल रहे लंगर में खाना खाया। इसके बाद हरिद्वार से नजीबाबाद जा रहे एक ट्रक में बैठ गए। नजीबाबाद से मुरादाबाद तक पैदल आए। मुरादाबाद से रामपुर के लिए मिनी ट्रक मिला और रामपुर से फिर पैदल घर के लिए चल दिए।
कमल, निवासी इसरतपुर। भूखे रहना पड़ा
दिल्ली के चांदनी चौक पर कपड़े की दुकान पर मजदूरी करता था। लॉकडाउन के कारण दुकान बंद हो गई। सड़क किनारे खुले आसमान में सोता था। दो दिन तक भोजन खाने को नहीं मिला। अगर मैं पैदल घर जाने के लिए नहीं निकलता। तो कोरोना से तो नहीं शायद वहीं भूखा-प्यासा मर जाता। दिल्ली से मिलक तक पैदल आ गया हूं। रास्ते में कहीं भी ढाबा आदि पर खाना नहीं मिला। मिलक पहुंचने पर पुलिस और सामाजिक संस्था के लोगों ने फल दिए और भोजन कराया। इसके बाद उसने कुछ राहत महसूस की।
सुरेश कुमार, निवासी अहरो।