रालपुर में शिक्षा संग संस्कारों की पाठशाला
नाम है इनका दीप्ति सिंह। पेशे से शिक्षिका हैं लेकिन
सरेनी : नाम है इनका दीप्ति सिंह। पेशे से शिक्षिका हैं, लेकिन गृहस्थ जीवन से कोई सरोकार नहीं है। रालपुर में ही आश्रम बनाकर रहती हैं। स्कूल में छात्रों को पढ़ाती हैं, फिर आश्रम में उन्हें संस्कार सिखाती हैं। गरीब बच्चों की स्कूल हो या ट्यूशन फीस, वह अपने पास से ही जमा करती हैं। घर पर कोई परेशानी आने पर वह छात्रों के परिवारजनों की भी आर्थिक मदद करने से पीछे नहीं हटती। उनकी कर्तव्यनिष्ठा और भक्तिभाव की चहुंओर सराहना होने लगी है।
मूलरूप से कानपुर के किदवईनगर निवासी डॉ. रवि सिंह की बेटी दीप्ति वर्ष 2001 में गंगा तट पर बसे रालपुर गांव आ गई थी। यहां उनकी दादी आश्रम बनाकर सन्यासी जीवन व्यतीत करती थी। तभी से उनके मन में भी सन्यासी जीवन जीने का विचार आया। बीएड करने के बाद वर्ष 2009 में वह शिक्षिका बन गईं। 2014 में उनकी पोस्टिग रालपुर प्राथमिक विद्यालय में हो गई। इसके बाद से वह लगातार समाजहित के कार्याें में डूबी रहती हैं। दीप्ति समय से स्कूल जाती हैं, वहां अनुशासित ढंग से बच्चों को पढ़ाती हैं और दूसरे शिक्षकों को भी प्रेरित करती हैं। आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का खर्च वह खुद वहन करती हैं। आश्रम में वह स्वयं भी अतिरिक्त कक्षाएं चलाती हैं। यहां बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ संस्कारों का पाठ भी पढ़ाया जाता है। खासकर रालपुर गांव का वह खुद भ्रमण करके गरीब तबके के लोगों की समस्या पता करती हैं और उनका समाधान भी अपने खर्च से ही करने का प्रयास करती हैं।
कोरोना काल में चलाए जागरूकता कार्यक्रम
कोविड-19 के संक्रमण काल के दौरान जब स्कूल बंद हो गए तो दीप्ति ने आश्रम में ही बच्चों को नाट्य कला और पोस्टर बैनर बनाना सिखाया। जब लॉकडाउन खुला तो इन्हीं के स्कूल के बच्चों ने आसपास के गांवों में जाकर लोगों को जागरूक किया। उस दौरान भी गरीब असहायों की मदद करने में दीप्ति आगे रहीं और निजी खर्च से भोजन, राशन की व्यवस्था कराई।