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'खाता तो खुला पड़ा है, चाहे 15 लाख मिले या 72 हजार'

रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून पानी गए न ऊबरे मोती-मानुष चून जी हां पानी ही जिदगानी है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 11 Apr 2019 12:53 AM (IST)Updated: Thu, 11 Apr 2019 06:23 AM (IST)
'खाता तो खुला पड़ा है, चाहे 15 लाख मिले या 72 हजार'
'खाता तो खुला पड़ा है, चाहे 15 लाख मिले या 72 हजार'

रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून

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पानी गए न ऊबरे मोती-मानुष चून

जी हां, पानी ही जिदगानी है। रहिमन ने दोहे में इसकी कीमत समझाई है। यूं भी बिना खाये बीस-पचीस दिन मनुष्य जी सकता है, लेकिन बिना पानी तीन से चार दिन भी जीना मुश्किल हो जाएगा। पानी की कीमती कहानी हम आपको बताने ले चलते हैं, रायबरेली शहर से चालीस किलोमीटर दूर सोंडासी ग्रामसभा के वाजपेयीपुर गांव। जहां के हजारों लोग कई पीढि़यों से शुद्ध पेयजल तलाश रहे हैं। इनके आंगन में जो भी नल-कुआं हैं उनमें खारा पानी आता है। फ्लोराइड युक्त पानी ने गांव के न जाने कितने घरों में सेहत बिगाड़ी है। चुनावी मौसमों में लोगों की इसी समस्या पर नेता घड़ियाली आंसू बहाते हैं। चुनाव के बाद भूल-बिसर जाते हैं। हां, पहले इंदिरा गांधी ने गांव में एक टंकी बनवाई थी, वह ध्वस्त हुई तो सांसद सोनिया गांधी ने दूसरी टंकी बनवा दी। करीब तीन साल पहले उसी टंकी की बोरिग ध्वस्त हो गई। तबसे अब तक गांव वाले नेता, जनप्रतिनिधि अफसरान सबकी चौखट पर फरियाद कर चुके हैं..सुनवाई नहीं हुई। फ्लोराइड पानी का कहर अब भी जिले की करीब 651 बस्तियां झेल रही हैं। इस राजनीतिक सहालग में जब गांव-गांव, गली-गली हाथ जोड़े नेता गणेश परिक्रमा कर रहे हैं। ऐसे में मतदाता कैसा महसूस कर रहे हैं। मीठे पानी को दशकों से तलाश रहे सोंडासी ग्राम सभा के वाजपेयीपुर गांव के मतदाता बुधवार को जागरण की चौपाल में दिल खोलकर बोले। उनके मन में क्या है, छह मई को वे किधर जाएंगे, इसको बिना बताए, हर वह बात कही जो मतदाताओं के मूड को दर्शा रही है। रसिक द्विवेदी की रिपोर्ट..

इस बार ऊंट किस करवट जाएगा, यह सवाल एक तेज तर्रार युवक का जागरण टीम से था। हमारी ओर से कुछ बोला जाता, इससे पहले ही वहीं बैठे फुनऊ प्रसाद त्रिवेदी ने अपने अंदाज में बताया कि..'ऊंट तो यहां करवटवा नहीं ले पाएगा..क्योंकि दूर तलक खारा पानी ऊ का बैठह ही नाई देई'। राजनीति पर व्यंग सरीखा गहरा संवाद शुरू हुआ तो इसको आसान करने जगन्नाथ द्विवेदी बोल पड़े कि '..चुनाव आवत है तो सब कोई अइहैं और कहिए हमका राजा बना देव, सब समस्या हल' यहय झूठ सुनत-सुनत हमार बाबा मरि गए। बापो खतम होई गए। अब हमरो नंबर आय गा है। मुला, मीठ पानी नाई मिल''। जगन्नाथ के सपोर्ट में अनूप कुमार उतरे। बोले ..'नेतन की चौखट नाप-नाप के अफसरों के दरवाजे भी घनचक्कर बने रहेन मगर समस्या न खत्म भई'। जो पानी की टंकी सोनिया गांधी ने बनवाई थी। तीन साल से उसी की बोरिग ध्वस्त पड़ी है। किसी ने सुनवाई नहीं की। हमने तो प्रधानमंत्री के पोर्टल से लेकर मुख्यमंत्री तक को ऑनलाइन इस बड़ी समस्या की ओर लिखा पढ़ा। बात चल ही रही थी कि इसी दौरान भड़ंग चाचा (नवल किशोर) बोले कि पानी तो दूर की बात अब अनाज बचा लेव वहय बहुत है। वे खेती किसानी की ओर चौपाल का रुख मोड़ते हुए बोले कि पहले ब्लॉक से सांड़ छोड़े का परमिट बनता रहा। अब तो खेतन में घुसि-घुसि के सांड़ खुदै परिमिट बना रहे हैं'। काउनो रोक नाही है। किसान तबाह होई गा है। इसी बीच पूरी चौपाल का ध्यान खींचते हुए अभिषेक उर्फ बड़े शुक्ल ने कहा कि 2005 में इस गांव ने एक बड़े अग्निकांड की तबाही झेली है। 105 घर जले थे। संवेदनाओं के घड़ियाली आंसू बहाए गए थे। लेकिन, पानी तब भी नहीं था और पानी अब भी नहीं है। उन्होंने कहा कि अब दौर बदल रहा है। युवा राष्ट्र के बारे में भी सोचता है और अपने रोजगार के बारे में भी। अभिषेक का जवाब देने के लिए चौपाल में कुछ लड़कों ने अपनी बात कही, वे बोले कि कुछ मिलय न मिलय राष्ट्र आगे बढ़े। देश मजबूत हो। इससे ज्यादा क्या चाहिए। मगर, युवाओं से तालुक हटाते हुए बूढ़े बुजुर्गों ने कहा कि रायबरेली को जिसने सब कुछ दिया, उसका अहसान तो है ही। हां, 15 लाख पर ठिठोली हुई। वो वयोवृद्ध लोग भी खिलखिलाकर हंस पड़े, जिनके मुंह में अब दांत भी नहीं है। एक बुजुर्ग ने यह कहते हुए अपनी बात पल भर में खत्म कर दी कि खाता तो खुल ही गा है, 15 लाख मिलय या 72 हजार। कुछ लोगों का यह भी कहना था कि घोषणा पत्र का रुपया दिया कहां से जाएगा। सोना बेचा जाएगा या हमही का गिरव रखिहैं। नोट बंदी पर भी बात चली तो एक बुजुर्ग बोले..कहा गा रहय कि गरीबी हटा देबय। मुला यहां तो गरीबय मनई लाइन में खड़ा कर दीन गा। न जाने केतनेन केर जान चली गय।


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