निजी स्कूलों की बनी मजबूरी, एडमिशन जरूरी
रायबरेली ऐसा पहली बार हो रहा है जब आरटीई (राइट टू एजूकेशन)का ब्रम्हास्त्र शिक्षा क्ष्
रायबरेली : ऐसा पहली बार हो रहा है, जब आरटीई (राइट टू एजूकेशन)का ब्रम्हास्त्र शिक्षा क्षेत्र में खौफ का माहौल बनाने लगा है। हमेशा लकीर पीटने वाली वह व्यवस्था जिसमें निजी स्कूलों में गरीब बच्चों का 25 प्रतिशत प्रवेश जरूरी होता है। उसे अफसरों की जुगलबंदी करके स्कूल वाले कागजी कोरम पूरा कर देते थे, मगर मीडिया में उठते सवालों और खबरों से अफसर सजग हुए हैं।
शिक्षा का अधिकार के तहत प्रथम चक्र के प्रवेश होने के बाद दूसरे चरण में प्रवेश प्रक्रिया शुरू की गई। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में 105 बच्चों चयन हुआ, जिन्हें निश्शुल्क शिक्षा के लिए एडमिट लेटर बीएसए कार्यालय से बांटे गए। इसमें 53 ग्रामीण, जबकि 52 बच्चे शहरी क्षेत्र के शामिल हैं। सबसे खास बात यह है कि इसमें आठ आवेदकों को संबंधित विद्यालय में सीट ही नहीं मिली। वहीं 29 आवेदन अलग-अलग खामियां दर्शाते हुए निरस्त कर दिए गए। गौरतलब है कि जुलाई माह में शुरू किए गए आवेदन प्रक्रिया में 66 ग्रामीण क्षेत्र और 89 शहरी क्षेत्र से आवेदन किए गए थे। बीईओ स्तर पर सत्यापन के बाद सूची तैयार की गई।
पहले चरण में 164 को मिला था मौका
पहले चरण में योजना के तहत मार्च माह में आवेदन जमा कराए गए। इस दौरान पर्याप्त संख्या में आवेदन नहीं आने पर अंतिम तिथि भी बढ़ाई गई। इसके बाद बमुश्किल से 164 बच्चों का प्रवेश हो सका। वहीं वेबसाइट में दर्ज निजी विद्यालयों के कम संख्या पर विभाग की खूब किरकिरी हुई।
आवेदन निरस्त की कराए जांच
ऑल स्कूल पैरेंट्स एसोसिएशन जिला महामंत्री शशांक सिंह का कहना है कि प्राइवेट स्कूलों की साठगांठ के कारण सीेटें नहीं भर सकी। कई आवेदन निरस्त कर दिए गए। इसकी जांच होनी चाहिए।