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काम की तलाश में निकले और रास्ते में मिल गई मौत

रायबरेली : उनके पास अगर कुछ बचा था तो ठेठ बिहारी भाषा, और गरीबी की मजबूरी। घटना दे

By JagranEdited By: Published: Thu, 11 Oct 2018 12:09 AM (IST)Updated: Thu, 11 Oct 2018 12:09 AM (IST)
काम की तलाश में निकले और रास्ते में मिल गई मौत
काम की तलाश में निकले और रास्ते में मिल गई मौत

रायबरेली : उनके पास अगर कुछ बचा था तो ठेठ बिहारी भाषा, और गरीबी की मजबूरी। घटना देखने वाली आंखें धूल के गुबार से सनी थीं। गिरते आंसू चेहरे पर निशान बना रहे थे। हालात और नियति दोनों ने इन्हें बदहवास कर रखा था। अफसरों और मीडिया के लोगों को देखकर वे दौड़ पड़ते, फिर अपने लापता हुए साथी के बारे में पूछने लगते। यह मासूमियत और बेचारगी भरी फरियाद सुनकर लोग सांत्वना देकर आगे बढ़ जाते। साढ़े छह बजे से शुरू हुई यह खोजबीन करीब दस बजे खत्म हुई। सूचना दुखद थी। बीस लोगों की टीम का एक साथ रास्ते में साथ छोड़कर काल के गाल में समा गया।

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बिहार के 20 मजदूर दानापुर रेलवे स्टेशन से न्यू फरक्का एक्सप्रेस में चढ़े थे। सभी काम की तलाश में पंजाब जा रहे थे। वे किशनगंज जिले के थे। इन्हीं में से एक विजय मंडल भी था। उसने बताया कि 11 लोग इंजन के पीछे वाली जनरल बोगी में बैठे थे। शेष नौ लोग सबसे पीछे लगे कोच में। किसी को सीट मिली तो कोई फर्श पर ही बैठकर सफर कर रहा था। कुछ लोग गेट के पास लटककर बैठे थे। डिब्बा यात्रियों से खचाखच भरा था। ट्रेन दौड़ रही थी तभी अचानक एक जोरदार झटका लगा। ऐसा महसूस हुआ कि जमीन धंस गई हो। लगा किसी ने ट्रेन के डिब्बे को उठाकर पटरी से बाहर फेंक दिया हो। हर तरफ सिर्फ धूल का गुबार था। ट्रेन में भगदड़ मच चुकी थी। कुछ लोग दरवाजे से उतरे तो कुछ बिना जाली वाली खिड़की से कूदकर भागे। वह अपने साथियों के साथ बाहर आया तो होश उड़ गए। कुछ देर बाद लाशों में अपनों को तलाशा जाने लगा। लेकिन एक साथी अजय कुर्री नहीं मिला। उसकी तलाश गिरी-पड़ी सभी बोगियों और आसपास की झाडियों में की, लेकिन पता नहीं चला। सीएचसी से लेकर जिला अस्पताल तक साथी गए। हर जगह से मायूसी हाथ लगी। बाद में फिर जिला अस्पताल में एक अज्ञात शव होने की जानकारी मिली। उसे देखा गया तो वह किसी और का नहीं, बल्कि अजय कुर्री का था। यह खबर सुनकर सभी साथी फफक पड़े। उसकी तो टूटी-फूटी गृहस्थी है

अरे भाई अजय कुर्री की तो बहुत टूटी-फूटी गृहस्थी है। माई-बाप केउ नाही हैं उसके। तीन छोटे-छोटे बच्चे और पत्नी को छोड़कर दो जून की रोटी का बंदोबस्त करने वह हम लोगों के साथ चला था। गांव में रहने को घर भी दुरुस्त नहीं है। छप्पर तले किसी तरह गुजर-बसर करता था। सोचा था कि दिवाली तक कुछ पैसा कमाकर खुशियां लेकर घर लौटेगा। लेकिन अब तो दीवाली से पहले उसके घर का दीया ही बुझ गया।


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