Move to Jagran APP

एक प्रेम ऐसा भी....पशु तो किसी ने पौधों से की दिल्लगी

लेकिन कुछ लोग प्रेम को सेवाभाव देखभाल और उनके प्रति समर्पण से परिभाषित कर रहे हैं

By JagranEdited By: Published: Sat, 13 Feb 2021 11:44 PM (IST)Updated: Sat, 13 Feb 2021 11:44 PM (IST)
एक प्रेम ऐसा भी....पशु तो किसी ने पौधों से की दिल्लगी
एक प्रेम ऐसा भी....पशु तो किसी ने पौधों से की दिल्लगी

आशुतोष सिंह, रायबेली : प्रेम के इजहार का दिन वैलेंटाइन डे। प्रेमी जोड़े इस दिन को खास तरीके से मनाते हैं। महंगे उपहारों का आदान प्रदान होता है, लेकिन कुछ लोग प्रेम को सेवाभाव, देखभाल और उनके प्रति समर्पण से परिभाषित कर रहे हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं जिले के ऐसे चेहरों की, जिनका मवेशियों और पौधों से प्रेम अनोखा है और वे इस रिश्ते को दिनोंदिन मजबूती दे रहे है। उनकी सेवा और देखभाल में कोई बाधा नहीं आती है।

loksabha election banner

अर्पित की आवाज सुन दौड़े आते मवेशी

इंदिरा नगर के अर्पित यादव ने वैसे तो इंजीनियरिग की पढ़ाई की है। एक मौका था जब उन्हें अपनी थिसिस के लिए बूचड़खाना जाना पड़ा। वहां पहुंचे तो ²श्य देख हतप्रभ रह गए। अपनी बारी का इंतजार करते हजारों मवेशी और उनकी चीखने की आवाजों ने इन्हें झकझोर दिया। धीरे-धीरे इनका लगाव मवेशियों से बढ़ता गया। मवेशी को पीड़ा में देख वह अपने आप को रोक नहीं पाते और निस्वार्थ भाव से जुट जाते। मवेशियों से उनका प्रेम जुनून में बदल गया। अब तो कोई किसी मवेशी के कष्ट होने की सूचना भी दे दे तो दौड़े चले जाते हैं। अर्पित ने बताया कि इनसे लगाव इस कदर है कि उनकी पीड़ा देख मेरी भावुकता के आंसू छलक उठते हैं। आलम यह हो गया कि अर्पित की आवाज पर मवेशी एकत्र हो जाते हैं। चार साल में 4700 मवेशियों को उपचार दिया। जरूरत पड़ने पर अपने घर पर ही उन्हें रखकर कई दिन तक दवा करते।

मलिकमऊ के विजय बहादुर सिंह का पेड़ पौधों से काफी लगाव था। 25 वर्ष पूर्व एक संस्था के सहारे उन्होंने पौधे रोपने की पहल की। इसके लिए उन्होंने गांव के पास सई नदी के तट के किनारे की वर्षों से बंजर भूमि को चुना। पौधों के प्रति उनके लगाव और प्रेम में बाधाएं भी तमाम आई, लेकिन उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण के आगे वह टिक न सकी। नदी किनारे पौधे लगाने शुरू किए। धीरे-धीरे पौधे रोपने की उनकी क्षमता बढ़ती गई। प्रतिवर्ष 25 हजार पौधे लगाने का लक्ष्य रखा और उसे पूरा भी किया। आलम यह है कि 400 बीघे भूमि पर अब तक दो लाख 65 हजार पौधे लगवा चुके। कभी बंजर दिखने वाला क्षेत्र हरा भरा और पक्षियों की आवाजों से गुलजार रहता है। उन्होंने बताया कि अब ज्यादा भूमि नहीं बची, फिरभी पांच हजार पेड़ अब भी प्रतिवर्ष लगवाता हूं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.