कोरोना संकट में मिले दर्द का मरहम बनीं सब्जियां
परशदेपुर (रायबरेली) कोरोना संकट में लगे लॉकडाउन ने तमाम जख्म दिए। सपने संजोकर परदेश ग
परशदेपुर (रायबरेली): कोरोना संकट में लगे लॉकडाउन ने तमाम जख्म दिए। सपने संजोकर परदेश गए लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा तो बहुतों की जेब खाली हो गई। ज्यादातर प्रवासी ऐसी ही मुश्किलों से जूझ रहे हैं। परशदेपुर के टंटापुर गांव में गैर प्रांतों से लौटे प्रवासियों की भी यही समस्या थी। लेकिन, इन्होंने हार नहीं मानी। बल्कि अपनी मेहनत और जज्बे के बूते परेशानियों से भरे दौर में जीना सीख लिया। काम-काज छिनने और घर लौटने के बाद इन्होंने नगदी फसलों की तरफ रुख किया। चटक धूप में खूब पसीना बहाया। उनका मेहनत रंग लाई। वर्तमान में यहां की सब्जी नगर पंचायत परशदेपुर, मेंहदीगंज, बीरगंज, धरई के अलावा प्रतापगढ़ जनपद के परानीपुर और अठेहा बाजार में तक जाती है। इससे बहुत आमदनी न सही, लेकिन तंगहाली जरूर दूर हो गई।
मुश्किल दौर में पुश्तैनी कारोबार बना सहारा
परशदेपुर क्षेत्र के टंटापुर गांव में ऐसा कोई घर नहीं जो सब्जी की खेती न करता हो। गांव के कई लोग खेती को छोड़कर सपनों को पूरा करने दूसरे प्रांत चले गए थे। लॉकडाउन के मुश्किल घड़ी में यह पुश्तैनी कारोबार सहारा बन गया है। वर्तमान में जो भी परदेश से लौटे वे खेती में जुट गये। सुखराम ने बताया कि ढाई बीघा टमाटर की खेती कर रहे हैं। इसी से 10 लोगों का पूरा परिवार चल रहा। गांव के बाहर और बाजार में बेच लेते है। बैजनाथ मौर्य के खेत में भिडी, तोरई, कददू, मिर्च की खेती है। इनका लड़का विनीत कुमार चंडीगढ़ में नौकरी करता था। शहर से लौटने के बाद अब खेती में हाथ बटा रहा है। इसी तरह रघुनंदन का लड़का कपूर भी दिल्ली से लौटकर पिता के साथ खेती कर रहा है।
परिवार का सहारा, बढ़ने लगी आय
सुखराम ने बताया कि तीसरे लॉकडाउन में टमाटर का भाव गिर जाने की कारण कुछ नुकसान जरूरत हुआ, लेकिन विपरीत हालात में भी गुजर बसर की व्यवस्था हो जाती थी। प्रतिदिन तीन सौ से पांच सौ रुपये की बिक्री हो जाती थी। अब पहले से कुछ सुधरा है। बैजनाथ मौर्य लौकी, करेला, खीरा, भिडी आदि सब्जियों की खेती करने के साथ दुकान भी संभालते हैं। यही उनके पूरे परिवार का सहारा है। इसीतरह रामसजीवन, हरीलाल, शोभनाथ, शिवकुमार, गंगा प्रसाद, दर्शन, रामलखन, सत्य नरायण, कहैंयालाल, धनराज आदि ने सब्जी की खेती को अपना व्यवसाय बना लिया।