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संपा-सुख-समृद्धि का आधार गाधी का 'चरखा'

खीरों (रायबरेली) महात्मा गाधी के जीवन दर्शन का आधार चरखा जिस पर सूत के साथ स्वदेशी भावन

By JagranEdited By: Published: Tue, 01 Oct 2019 11:17 PM (IST)Updated: Thu, 03 Oct 2019 06:21 AM (IST)
संपा-सुख-समृद्धि का आधार गाधी का 'चरखा'
संपा-सुख-समृद्धि का आधार गाधी का 'चरखा'

खीरों (रायबरेली) : महात्मा गाधी के जीवन दर्शन का आधार चरखा, जिस पर सूत के साथ स्वदेशी भावना भी इतराती है। अंग्रेजी हुकूमत को हिला डालने वाले ये चरखे आज भी सुदूर गावों में रोजी रोटी का जरिया बने हुए हैं। 10 वषरें से जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर खीरों विकास क्षेत्र के पाहो में चरखे से 150 परिवारों की जीविका की गाड़ी चल रही है।

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मल्लावा जाता है सूत

खादी एवं ग्रामोद्योग की तत्कालीन अध्यक्ष कुमुद बेन जोशी ने छह जून 2009 को इस केंद्र का उद्घाटन किया था। हरदोई के मल्लावा से कच्चा माल यानी पूनी यहा आती है। इसी से महिलाएं सूत बनाती हैं, जो कातकर मल्लावा भेजा जाता है। वहा इसी सूत से मशीनों द्वारा कपड़ा बनाया जाता है।

घर के काम करके केंद्र आती हैं महिलाएं

मौजूदा समय में पाहो के अलावा नजदीक के गावों की 150 महिलाएं यहा सूत कातने आती हैं। घर का कामकाज निपटाने के बाद वे केंद्र पर चार से छह घटे समय देती हैं। एक महिला एक दिन में औसतन 500 से 600 ग्राम सूत कातती है। जिससे उन्हें प्रतिमाह छह से नौ हजार रुपये मिलते हैं।

75 महिलाओं को मिला भवन

चरखा केंद्र में काम करने वाली अधिकाश महिलाएं गरीब परिवारों से ताल्लुक रखती हैं। इनमें से 75 महिलाओं को खादी ग्रामोद्योग की ओर से भवन भी उपलब्ध कराया गया है।

मिला सम्मान

केंद्र पर बेहतर काम करने पर पाहो की अर्चना पाडेय को वर्ष 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने खादी ग्रामोद्योग मंत्री वीरभद्र सिंह की मौजूदगी में दिल्ली में मेडल और 25 हजार का चेक देकर सम्मानित किया। केंद्र की महिलाओं ने बताया कि तीन माह के काम पर आयोग से उन्हें उनकी मेहनत का 28 प्रतिशत बोनस भी दिया जाता है।

मशीनें लगीं मगर..

इस चरखा केंद्र की प्रगति को देखते हुए 2009 में ही स्फूर्ति योजना के अंतर्गत स्वराज आश्रम कानपुर ने इसे संचालित करना शुरू कर दिया। इस बीच वर्ष 2012 में केंद्र पर सूती कपड़ों की बुनाई के लिए मशीनें भी लगाई गईं। इसका उद्घाटन 28 दिसंबर 2012 को केंद्रीय मंत्री केएच मुनियप्पा ने किया, लेकिन यहां बुनाई का कार्य नहीं हो सका और मशीने मल्लावा हरदोई भेज दी गईं।


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