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72 महीने 72 पेशी, 20 मिनट में आ गया फैसला

--- दुधमुंही गुड़िया को अब मिला इन्साफ

By JagranEdited By: Published: Sat, 24 Oct 2020 12:15 AM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 05:03 AM (IST)
72 महीने 72 पेशी, 20 मिनट में आ गया फैसला
72 महीने 72 पेशी, 20 मिनट में आ गया फैसला

रायबरेली : छह साल पहले की वह काली रात जब बच्ची संग एक वहशी दरिदे ने हैवानियत की। जब परिवारजन तिलकोत्सव की खुशियां मना रहे थे, उसी दौरान ''दुधमुंही गुड़िया'' को गोद में खिलाने के बहाने दरिदे ने जघन्य से जघन्यतम वारदात को अंजाम दे डाला। मामले की सुनवाई 72 महीनों में इतनी ही पेशियों में हुई। 20 अक्टूबर को मुल्जिम दोष सिद्ध हो गया। शुक्रवार की पहली पाली में सजा पर करीब 20 मिनट बहस हुई। न्यायाधीश ने दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं को सुना। इसके बाद दूसरी पाली में 20 मिनट के अंदर अपना फैसला सुनाते हुए पेन तोड़ी और न्याय कर दिया। विशेष लोक अभियोजक (पॉक्सो) वेदपाल सिंह ने इस मुकदमे में पीड़िता का पक्ष न्यायालय में रखा। उन्होंने बताया कि दो मई 2014 को यह वारदात सलोन थाना क्षेत्र में हुई थी। बच्ची से दुष्कर्म कर उसकी हत्या कर दी गई। दो घंटे बाद ही बच्ची का शव बरामद हुआ। आधे घंटे के अंदर पीड़ित परिवार कोतवाली पहुंच गया। वहां एफआइआर लिखाई। तत्काल पुलिस ने आरोपित जितेंद्र सिंह को गिरफ्तार कर लिया। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट यह बताने के लिए पर्याप्त थी कि किस तरह बच्ची के साथ हैवानियत हुई। इसके अलावा 12 गवाहों ने भी इस केस को मजबूती दी।

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इनसेट छह साल से खा रहा काल कोठरी की हवा

घटना के बाद चार मई 2014 को मुल्जिम को सलोन पुलिस ने जिला जेल में दाखिल कराया था। इसके बाद से वह खुली हवा में सांस लेने को तरस गया। अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता का कहना है कि मुकदमे के दौरान कई बार जमानत की अपील की गई। मामला गंभीर होने के साथ जघन्यतम भी था। इस नाते जमानत नहीं मिली।

इनसेट जेल में ही बैठकर सुना मौत का फरमान

फैसले के दिन अभियुक्त न्यायालय नहीं लाया गया था, बल्कि जेल में ही वीडियो कान्फ्रेंसिग के जरिए फैसला सुनाया गया। जेल के सूत्रों का कहना है कि मौत की सजा सुनने के बाद भी मुल्जिम के चेहरे पर खौफ या पश्चाताप के भाव नहीं दिखे। वह सामान्य हरकतें करता रहा।

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बेटी को देर से मिला न्याय : पिता संसू, सलोन : दरिदगी का शिकार हुई मासूम के पिता ने हत्यारे को फांसी की सजा होने पर खुशी जताई। कहा कि देर से भले आया लेकिन, फैसला बेटी को न्याय दिलाने वाला रहा। यह पहले आता तो और भी अच्छा होता। मीडिया से बात करते हुए पिता की आंखें बेटी को यादकर भर आईं। कहा कि अगर, बेटी के साथ यह घटना न होती तो वह आज सात साल की हो गई होती। उसको न्याय मिलने में छह साल लग गए। उधर, तत्कालीन कोतवाल और बिजनौर के मौजूदा सीओ गजेंद्र पाल सिंह ने कहा कि यह फैसला उन लोगों के लिए एक सबक साबित होगा जो बहन-बेटियों को गलत नजर से देखते हैं।

पुलिस द्वारा पॉक्सो एक्ट के तहत विशेष पैरवी कर अभियुक्तों को सजा दिलाए जाने का प्रयास किया जा रहा था। मिशन शक्ति के प्रथम चरण के दौरान फांसी की सजा सुनाया जाना जिले की पुलिस की बड़ी सफलता है।

विश्वजीत श्रीवास्तव, एएसपी


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