कई सुधा हैं तैयार, संसाधन मिले तो बढे़ रफ्तार
रायबरेली :अंतरराष्ट्रीय एथलीट सुधा सिंह के जिले की खेल प्रतिभाएं निखरने को तैयार हैं, बशर्तें उसे सं
रायबरेली :अंतरराष्ट्रीय एथलीट सुधा सिंह के जिले की खेल प्रतिभाएं निखरने को तैयार हैं, बशर्तें उसे संसाधनों का सहारा मिल जाए। यहां हाकी में बेहतरीन अवसर हैं क्योंकि एस्टोटर्फ जैसी सुविधा है, लेकिन वॉलीबाल, क्रिकेट और दौड़ने वाले ट्रैक की कमी बेहद खलती है। छोटी उम्र से ही स्टेडियम में सजीले सपने देखने वाले खिलाडियों को तब बड़ा झटका लगता है जब उनकी लाख कोशिशों के बावजूद भी बड़े मैदानों में अवसर नहीं मिल पाता है। इसके पीछे महत्वपूर्ण कारण हॉस्टल का न होना भी है। 'दैनिक जागरण' की चौपाल खिलाड़ियों के बीच में लगी तो राजनीतिक चासनी से तरबतर कई सवाल ऐसे सामने आए जो व्यवस्था की आंख कान खोलने को काफी हैं। हां, युवाओं में मोदी क्रेज और उम्रदराज लोगों में कांग्रेस के एहसान भी साफ सुनाई दिखाई पड़ रहे हैं, लेकिन राजनीति उनके लिए दोयम दर्जे की चीज है। पहले नंबर पर उनके लिए खेल है। बुधवार को शहर के एक मात्र स्टेडियम मोतीलाल नेहरू में जूनियर, सीनियर से लेकर वरिष्ठ नागरिक और खिलाड़ी सभी ने अपने दिल की बात बेखटके कही, प्रस्तुत है रसिक द्विवेदी की रिपोर्ट..।
करीब 65 साल के रामशरण चौधरी साफ कहते हैं कि जब तक नौकरियों में खेलों का कोटा निर्धारित नहीं होगा, तब तक खेल का विकास असंभव है। इसके लिए राजनीतिक चेतना जगाने की जरूरत है। क्योंकि सियासतदां अपने भले की दिनरात चिता तो करते हैं। देश मजबूत हो, खिलाड़ी आगे बढ़ें उनके एजेंडे में उतनी संजीदगी से नहीं दिखती।
उमाशंकर वर्मा सेवानिवृत्त शिक्षक हैं। इनको मलाल है कि स्टेडियम होने के बावजूद भी प्रतिभाएं भटक रही हैं। वे कहते हैं कि यहां हॉस्टल अगर हो जाए तो खिलाड़ियों के लिए थोड़ी सी सुविधा बन पड़ेगी। वे भी खेलों की तरक्की में राजनीति के झूठे वादों को बड़ी बाधा मानते हैं। कहते है कि चुनावी दौर में सिर्फ बातें होती हैं। काम अगर हुआ होता तो स्टेडियम में दिखाई देता।
शरद श्रीवास्तव उमाशंकर की ही हां में हां जोड़ते हुए साफ कहते हैं कि खिलाड़ियों का आगे न बढ़ पाना संसाधनों के सीमित होने का बड़ा कारण हैं। श्रीवास्तव कहते हैं कि अगर अभिभावक पढ़ाई के आगे खेल को भी बच्चों में जोड़ना चाहे तो रास्ते खुले हैं। आज के अभिभावक ज्यादातर बच्चों से पढ़ाई में बेहतर होने की अपेक्षा किए बैठे हैं। यह भी एक बड़ा कारण है स्टेडियम से बच्चों का दूर हो जाना।
एलएन सोनकर आज के हालात से संतुष्ट नहीं है। उनका सवाल है कि आखिर जो तरक्की के रास्ते अन्य क्षेत्रों में है वह तरक्की के रास्ते खेलों की ओर क्यों नहीं है।
अजय श्रीवास्तव का मानना है कि जब राजनीतिक क्षेत्र के लोग एकजुट होकर खेल को एक जरूरत की तरह जोड़ने और जोड़वाने का प्रयास करेंगे तो स्टेडियम चहकेंगे और खिलाड़ी निकलेंगे। लेकिन ऐसा संभव दिखता नहीं है। कारण साफ है कि चुनाव जीतने से पहले नेता किसी और मुद्रा में होते हैं और जीतने के बाद उनकी भाव भंगिमाएं बदल जाती है।
हो रहा पलायन
रायबरेली में प्रतिभाएं बहुत है, लेकिन संसाधनों की कमी के कारण वे पलायन करने को मजबूर हैं। यह बात कोई और नहीं यूपीसीए उपाध्यक्ष मो. फहीम खुद कहते हैं। उनसे सवाल हुआ कि एक कोई नाम बता दीजिए जो यहां से बाहर गया हो तो उन्होंने चट से नाम लिया आकाश का। बोले क्रिकेट का यह खिलाड़ी यहां हॉस्टल की कमी और मैदान न होने के कारण बाहर चला गया। अब बड़ौदा में रहकर अभ्यास कर रहा है। वे कहते हैं कि कानपुर, लखनऊ जहां हॉस्टल की सुविधा है हमारे बहुत सारे खिलाड़ी वहां चले गए।
बोलीं खिलाड़ी
हॉकी की खिलाड़ी शिवानी सोनकर राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में उतर चुकी है। लेकिन उसे मलाल है कि इस खेल में लड़कियां आगे नहीं आ रही हैं। वो कहती है कि अच्छा भविष्य है, लेकिन मां-बाप पढ़ाई लिखाई की ओर ज्यादा केंद्रित रखते हैं। यही कारण है कि ग्रुप नहीं बन पाता है। उसका यह भी मानना है कि हॉस्टल अगर हो जाए तो साथी मिल जाएंगी और एस्ट्रोटर्फ का लाभ उठाकर रायबरेली की एक अजेय टीम बन जाएगी।
हॉकी खिलाड़ी प्रगति सिंह कहती है कि हर बार वह दूसरे जिले की टीम से खेलती हैँ। इसकी वजह जिले में बालिकाओं की हॉकी टीम का न होना। इस खेल को और अधिक बढावा देने की जरूरत है। साथ ही स्कूलों में खेल को बढ़ावा मिले, ताकि पढ़ाई के साथ खेल में भी भविष्य को संवारा जा सके। इसके लिए सरकार को बेहतर नीति बनानी चाहिए।
18 बीघा भूमि मिली थी तेरह साल पहले
राजनीति का खेलों के प्रति कितना दुराभाव है यह इसका नमूना मात्र है। तेरह वर्ष पहले खेल मैदान बनाने के लिए बसपा सरकार ने 18 बीघे भूमि का अधिग्रहण किया था। फिर उसे विभाग को सौंप दिया गया, लेकिन तब से कई सरकारें आई गई वहां एक ईंट नहीं रखी गई। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना खेलो इंडिया के तहत पत्राचार किया गया। सरकार ने जो जानकारी मांगी थी, उन्हें भेजी गई। अभी मामला वहीं का वहीं है।
कोट
जिले में बिछाई गई एस्ट्रोटर्फ इंटरनेशनल स्तर का हैं। हॉस्टल का निर्माण के लिए लगातार प्रयासरत हूं। कई बार शासन को पत्र भी भेजा गया हैँ। खेल को बढ़ावा देने के लिए सरकार को चाहिए कि शिक्षा की तरह ही खिलाड़ियों को छात्रवृत्ति जैसी प्रोत्साहन राशि मिले। ताकि खेल के लिए गरीब परिवार से जुड़े खिलाड़ी संसाधन खरीद सके।
-संतोष कुमार, हॉकी कोच
खेल को बढ़ावा देने के लिए पूरा प्रयास किया जा रहा है। स्टेडियम में इनडोर खेल बैडमिटन, टीटी के साथ हॉकी, वॉलीबाल, कबड्डी, ताइक्वांडो, तैराकी आदि की सुविधाएं है। द्वितीय स्टेडियम के लिए पत्राचार किया गया है। बजट मिला तो जरूर बनकर तैयार हो जाएगा।
-सर्वेंद्र सिह, जिला क्रीड़ाधिकारी