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    Allahabad HC का हत्याभियुक्त अधिवक्ता की उम्रकैद पर खंडित निर्णय, अब तीसरे जज करेंगे फैसला

    By Jagran News Edited By: Brijesh Srivastava
    Updated: Tue, 11 Nov 2025 06:00 PM (IST)

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार मिश्र की अपील पर खंडित फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने उन्हें बरी कर दिया, जबकि न्यायमूर्ति संदीप जैन ने सजा बरकरार रखी। अब मामला मुख्य न्यायाधीश को भेजा गया है, जो तीसरे न्यायमूर्ति को नामित करेंगे। उनका निर्णय हत्याभियुक्त अधिवक्ता की सजा पर अंतिम होगा। तीसरे न्यायमूर्ति की राय महत्वपूर्ण होगी।

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    फतेहपुर के अधिवक्ता की उम्रकैद मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खंडित फैसला दिया है।

    विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पत्नी की हत्या में आजीवन कारावास की सजा काट रहे फतेहपुर निवासी एक अधिवक्ता की अपील पर खंडित निर्णय सुनाया है। खंडपीठ में शामिल दोनों न्यायमूर्तियों ने अलग-अलग फैसला दिया।

     अंतिम निर्णय के लिए मुख्य न्यायाधीश को संदर्भित 

    न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने बरी कर दिया है जबकि न्यायमूर्ति संदीप जैन ने अपीलार्थी शैलेंद्र कुमार मिश्र की आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी। अब इस प्रकरण को अंतिम निर्णय के लिए मुख्य न्यायाधीश को संदर्भित कर दिया गया है, ताकि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 392 के तहत तीसरे न्यायमूर्ति को नामित किया जा सके।

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     तीसरे न्यायमूर्ति का निर्णय होगा महत्वपूर्ण 

    तीसरे न्यायमूर्ति की राय महत्वपूर्ण होगी। उनका निर्णय तय करेगा कि आजीवन कारावास की सजा बरकरार रहेगी अथवा अपीलार्थी को बरी कर दिया जाएगा। मुकदमे से जुड़े संक्षिप्त तथ्य यह हैं कि फतेहपुर की कोतवाली में मामला दर्ज है।

    वर्ष 1996 का मामला

    ट्रायल कोर्ट ने वर्ष 1996 में पेशे से अधिवक्ता और मुकदमे में अपीलार्थी शैलेंद्र कुमार मिश्रा को पत्नी सुनीता देवी की हत्या का दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। अभियोजन कथानक है कि अपीलकर्ता, अपनी पत्नी से उसकी संपत्ति और पहले पति (एयरफोर्स सार्जेंट विजय शंकर मिश्रा) से मिला लगभग दो लाख रुपये अपने नाम स्थानांतरित करने की मांग कर रहा था।

     बचाव पक्ष की दलील

    सुनीता के मना करने पर अपीलकर्ता ने 26 जुलाई 1991 को गोली मार दी और भाग निकला। बचाव पक्ष के अनुसार गोली जानबूझकर नहीं चलाई गई थी। अपीलार्थी जब अपने साले प्रदीप से हिसाब-किताब करने जा रहा था तो पत्नी ने उसे रोकने की कोशिश की। इस दौरान हाथापाई में बंदूक दुर्घटनावश चल गई।

     अपीलार्थी को किया बरी

    न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने अपीलार्थी को बरी करते हुए कहा है कि गवाही में महत्वपूर्ण सुधार थे और यह बात एफआइआर या पुलिस को पहले दिए बयान में नहीं थी। यह भी माना कि नाबालिग गवाहों को सिखाया जा सकता है क्योंकि घटना के बाद वह मामा के संरक्षण में थे।

    प्रकरण तीसरे न्यायमूर्ति को भेजा जाएगा

    अभियोजन पक्ष संदेह से परे यह साबित करने में विफल रहा है कि अपीलकर्ता ने जानबूझकर हत्या के इरादे से गोली चलाई थी। न्यायमूर्ति संदीप जैन ने अभियोजन पक्ष के गवाहों ( दंपती के बच्चों) की गवाही को विश्वसनीय माना। उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि अपीलार्थी ने गोली चलाई थी। बंदूक दुर्घटनाग्रस्त होने की बात मनगढ़ंत थी। अंतिम आदेश पर न्यायमूर्तियों की असहमति के चलते प्रकरण तीसरे न्यायमूर्ति को भेजा जाएगा। 

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