गोल्डेन कार्ड न बनवाने वाले सूची से होंगे बाहर
आयुष्मान भारत जन आरोग्य योजना में नाम होने के बाद गोल्डेन कार्ड न बवाने सूची से बाहर हो सकते हैं। मुख्यमंत्री ने कांफ्रेंसिंग के जरिए आयुष्मान की समीक्षा की तो प्रतापगढ़ की प्रगति देख नाराज हुए।
जागरण संवाददाता, प्रतापगढ़ : आयुष्मान भारत जन आरोग्य योजना में नाम होने के बाद गोल्डेन कार्ड न बनवाने वालों को सूची से बाहर किया जाएगा। प्रतापगढ़ समेत कई जिलों में इस तरह की शिकायतें मिलने पर मुख्यमंत्री ने इस तरह के निर्देश दिए हैं। उनकी जगह नए जरूरतमंद लोगों को सूची में शामिल किया जाएगा। स्थानीय स्तर पर इस निर्देश के पालन की कवायद शुरू हो गई है।
साल भर में पांच लाख रुपये तक का फ्री इलाज मुहैया कराने वाले गोल्डेन कार्ड बनवाने में 106 गांव काफी रह गए हैं। कहीं दो तो कहीं चार ही लोगों ने बनवाए हैं। ऐसे में जिला योजना से संतृप्त तो हो गया है, पर उसका वास्तविक मकसद पूरा नहीं हो रहा है। लोग आयुष्मान के पात्र होकर भी इलाज के लिए दर-दर भटक रहे हैं। कहीं अशिक्षा तो कहीं अन्य कारणों से इसे बनवाने में रुचि नहीं ले रहे हैं। चार दिन पहले मुख्यमंत्री ने वीडियो कान्फ्रेंसिग के जरिए आयुष्मान की समीक्षा की तो प्रतापगढ़ की प्रगति देख नाराज हुए। उन्होंने यहां के अफसरों से साफ कहा कि कार्ड बनवाने को पात्रों को दिसंबर तक तक का मौका दीजिए। उसके बाद जो लोग न बनवाएं उनका नाम सूची से हटाइए। उतनी संख्या में नए जरूरतमंद लोगों को शामिल करिए। जिसे जरूरत है वह तो इलाज पाए।
शासन के इस फरमान व तेवर के बाद जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग ने उन सभी गांवों की नए सिरे से समीक्षा शुरू कर दी है, जहां कार्ड बहुत कम बने हैं। आयुष्मान के पोर्टल पर अपलोड नामों के आगे लिखा जा रहा है कि कार्ड बना-नहीं बना। इससे उनको अलग करने में आसानी होगी। जो प्रगति की दर है उससे करीब 70 हजार परिवारों के सूची से बाहर हो जाने की आशंका है। सीएमओ डॉ. एके श्रीवास्तव का कहना है कि नए सिरे से योजना की समीक्षा की जा रही है। नए साल में पात्रों की नई सूची जारी होगी।
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नगरीय क्षेत्र भी फिसड्डी
कहते हैं कि अर्बन यानि नगरीय क्षेत्र में पढ़े-लिखे लोग रहते हैं। पढ़े-लिखे न होने पर उनको बताने वाले लोग शहर में अधिक होते हैं, पर आयुष्मान योजना की बात करें तो नगरीय क्षेत्र गांवों से भी पीछे है। नगर पालिका व नगर पंचायतों में पात्रों के एक लाख 99 हजार कार्ड बनाने का लक्ष्य है। योजना शुरू हुए दो साल से अधिक हो गए, अब तक अर्बन इलाके में महज 11 हजार 600 लोग ही कार्ड बनवा सके हैं। यह प्रगति विभाग के लिए बहुत चिताजनक है। वह कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं है।
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आशा-सेंटर संचालक में रार
कामन सर्विस सेंटर पर 30 रुपये में गोल्डेन कार्ड बनाया जाता है। यह रेट सरकार ने तय किया है। जबकि जिला अस्पताल, महिला अस्पताल व सीएचसी में फ्री में बनता है। सर्विस सेंटर वालों पर आरोप लगा कि वह कार्ड बनाने में सहयोग नहीं किए। इस पर संचालकों ने आशा कार्यकर्ता को जिम्मेदार बता दिया। कहा कि वह लैपटाप लेकर गांव जाते हैं तो आशा सहयोग नहीं करती। पात्रों को बुलाकर नहीं लाती। इन दोनों की रार के कारण कार्ड नहीं बन पा रहे हैं।