खुल गए केदारनाथ धाम के कपाट, विराट रूप में मां दुर्गा
भैरोपुर पंडाल हर बार अपने नए स्वरूप को लेकर चर्चा में रहता है। इस बार वह केदारनाथ धाम के स्वरूप में है। आंखों में जैसे बस जाने को आतुर हो पूरा धाम। अपलक देखता रह जाए कोई ऐसा बना है मां दुर्गा का पंडाल। कारीगरी की बेहतरीन मिसाल करीब तीस फीट ऊंचा मां का पंडाल बाहर से उसे केदारनाथ धाम का लुक देने का जो प्रयास किया गया है वह ह्रदय को छू लेने के लिए काफी है। पंडाल में घुसते ही केसरिया रोशनी से नहा उठने के साथ ही मां दुर्गा का स्वरूप देख मन श्रद्धा से भर उठता है। हाथों में त्रिशूल लिए मां की भव्य मूर्ति के साथ ही गणेश जी की प्रतिमा लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी है।
आशुतोष तिवारी, प्रतापगढ़ : भैरोपुर पंडाल हर बार अपने नए स्वरूप को लेकर चर्चा में रहता है। इस बार वह केदारनाथ धाम के स्वरूप में है। आंखों में जैसे बस जाने को आतुर हो पूरा धाम। अपलक देखता रह जाए कोई, ऐसा बना है मां दुर्गा का पंडाल। कारीगरी की बेहतरीन मिसाल, करीब तीस फीट ऊंचा मां का पंडाल बाहर से उसे केदारनाथ धाम का लुक देने का जो प्रयास किया गया है, वह ह्रदय को छू लेने के लिए काफी है। पंडाल में घुसते ही केसरिया रोशनी से नहा उठने के साथ ही मां दुर्गा का स्वरूप देख मन श्रद्धा से भर उठता है। हाथों में त्रिशूल लिए मां की भव्य मूर्ति के साथ ही गणेश जी की प्रतिमा लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी है। वहां भक्ति गीत पर झूमते दर्शक और सामने चलता लंगर, मानों समानांतर भावनाओं का समुंदर हिलोरे मार रहा हो। सबकुछ भाव-विभोर कर देने वाला।
इन सब के पीछे किसी सिद्धहस्त कारीगर का हाथ नहीं है, यह कमाल की मेहनत कमेटी के पदाधिकारियों के बच्चों का है। कौतूहल पैदा करते हुए श्री नव दुर्गा पूजा समिति शिव मंदिर के अध्यक्ष रामचंद्र भारती यह राज खोलते हैं। पंडाल के प्रति इतनी समर्पण भावना के पीछे की कहानी वह एक सांस में बता डालते हैं। पेशे से शिक्षक रामचंद्र भारती अपने कुछ साथियों के साथ वर्ष 1986 में सुल्तानपुर गए थे। वहां जाने पर देवी के अनगिनत स्वरूप देख सभी साथी मंत्रमुग्ध हो उठे। वास्तव में कोलकाता के बाद कहीं दुर्गा की प्रतिमाएं इतनी भव्यता और व्यापक स्तर पर सजाने की परंपरा सिर्फ सुल्तानपुर में ही देखी जा सकती है। वहां से लौटने के बाद साथियों से विचार-विमर्श हुआ और फिर अगले साल 400 रुपये में दुर्गा मां की प्रतिमा खरीदी गई, जो बहुत सुंदर थी। उस समय 400 रुपया भी काफी मायने रखता था। यह सिलसिला फिर चल निकला। हर साल हम दुर्गा मां के पंडाल को लेकर उस समय की देश की किसी बड़ी घटना या किसी धाम विशेष पर ध्यान केंद्रित किया करते हैं। कारगिल का युद्ध हुआ था और उस बार दुर्गा पूजा का पंडाल कारगिल शहीदों की याद में बनाया गया था। उस समय पहाड़ी का स्वरूप ऐसा दिया गया था, जो दूर से यथार्थ का अनुभव कराती थी, जिसकी श्रद्धालुओं ने बड़ी तारीफ की थी। इस बार भी कुछ ऐसा ही करने का प्रयास किया गया है। इस बार मां दुर्गा के पंडाल को केदारनाथ धाम का स्वरूप दिया गया है। हम सभी पदाधिकारी, चाहें वह दुर्गा पूजा समिति के संरक्षक अशोक कुमार सिंह हो या फिर प्रबंधक रामचंद्र भारती, सभी ने दिन-रात एक किया है, मां दुर्गा की सेवा कर जो असीम आनंद प्राप्त होता है, उसे शब्दों में बया कर पाना असंभव है।
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दुर्गा मां के कई स्वरूप विराजे हैं, कर लो दर्शन
पंडाल के अंदर दुर्गा के कई रूप देखने को मिलते हैं। शेर पर सवार मां की प्रतिमा देख हर कोई अपलक देखता रह जाता है। तभी तो चिलबिला का राजेश अपनी पत्नी के साथ घंटाघर से वापसी में रुक गया। अंदर दुर्गा की प्रतिमा देख वह ठगा सा रह गया, अपनी पत्नी से बोला देख माई बहुत गुस्सा में अहें, अंखिया से आग निकरत अहै। इसी तरह कई और स्वरूप वहां पर विराजे हैं, जिन्हें देख श्रद्धालुओं का मन श्रद्धा से भर जाता है।
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नवरात्र पर नहीं भरत मिलाप के बाद होती हैं विसर्जित
भैरोपुर में हर साल स्थापित की जाने वाली मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन परंपरा से हटकर है। इनका विसर्जन नवरात्र के समापन पर नहीं बल्कि भरत मिलाप के बाद होता है।