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चीन से आते हैं राम, सूरत से लक्ष्मण

विश्वनाथगंज, प्रतापगढ़ : मांधाता ब्लाक के डांड़ी गांव की रामलीला में गांव के लोग ही मिलकर मंचन करते हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 13 Oct 2018 10:32 PM (IST)Updated: Sat, 13 Oct 2018 10:32 PM (IST)
चीन से आते हैं राम, सूरत से लक्ष्मण
चीन से आते हैं राम, सूरत से लक्ष्मण

विश्वनाथगंज, प्रतापगढ़ : मांधाता ब्लाक के डांड़ी गांव की रामलीला में गांव के लोग ही मिलकर मंचन करते हैं। इसमें राम का रोल करने को पात्र चीन से आते हैं और सूरत से लक्ष्मण आते हैं। यहां की संवाद अदायगी जोरदार होती है।

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आदर्श रामलीला संघ की स्थापना 1998 रवींद्र प्रताप ¨सह शिक्षक, दिनेश पांडेय और स्वर्गीय रामकृपाल वर्मा ने की थी। गांव में नवयुवकों को बुलाकर एक गोष्ठी की और निर्णय लिया गांव व आसपास के लोग सब पढ़े लिखे हैं। सब कोई मिलकर एक नया काम करें, जिससे आपस में भाईचारा कायम हो। प्रेम भी बढ़े। नवयुवकों के साथ बुजुर्गो ने भी हामी भरी। थोड़ा-थोड़ा चंदा लेकर रामलीला कमेटी का गठन किया गया। 15 दिन की ट्रे¨नग में आसपास गांव के लड़कों को प्रशिक्षित कर रामलीला का अभिनय किया जाने लगा। इसे लोगों से बड़ी सराहना मिली। चौबेपुर कैला काला और डांड़ी के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

रामलीला नवरात्र से शुरू होकर नौ दिन तक चलती है। भारी संख्या में महिलाएं इकट्ठा होती हैं। पूर्व मौसम वैज्ञानिक कृपा शंकर ¨सह निवासी कैलाकला विदूषक का रोल करते हैं। साधु ¨सह, अतुल पांडेय, अमृत ¨सह, पंकज यादव, सूरज सरोज, सुधांशु ¨सह, आशु ¨सह, बबलू ¨सह, विकास पांडेय, अनुराग मिश्र, अलग-अलग रूपों में अभिनय करते हैं। रवींद्र प्रताप ¨सह, दिनेश पांडेय जो संरक्षक के रूप में जिन्होंने स्थापना की है। उनका कहना है कि हमारी रामलीला कमेटी में बुद्धिजीवी लोग जुड़े हैं। यहां के कलाकार आज आजीविका के लिए मुंबई, दिल्ली, सूरत, चंडीगढ़, पूना से नवरात्र में आकर अपने किरदार करते हैं। प्रधान उमेश ¨सह का भी सहयोग रहता है। राम का अभिनय राजेश तिवारी करते हैं। वह चाइना में सीमेंट कंपनी में नौकरी करते हैं। लक्ष्मण की भूमिका करने सूरत से गोलू आते हैं। हनुमान बनने वाले आशू ¨सह व परशुराम का रोल करने अमृत ¨सह मुंबई से आते हैं। रवींद्र स्वयं दशरथ बनते हैं। मेघनाथ बनने वाले शुभम पुणे में काम करते हैं। दिल्ली से राजू तिवारी आते हैं, जो कई रोल करते हैं। यह सब लोग रामलीला का मंचन करने के लिए सप्ताह पूर्व आ जाते हैं, क्योंकि इनकी तैयारी कराई जाती है।


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