प्रतापगढ़ : जिले में केवल चार नेत्र सर्जन हैं। ऐसे में आपरेशन होना टेढ़ी खीर होता है। जानकर अचरज होता है कि इतने बड़े जिले में जहां अस्पतालों का जाल है, वहां पर आई सर्जन इतने कम हैं। इनके पास भी जरूरी उपकरण नहीं है, जिससे मरीजों को आंखों के ऑपरेशन के लिए दूसरे शहरों में भटकना पड़ता है।
शहर में राजकीय मेडिकल कॉलेज के प्रताप बहादुर अस्पताल में ऑपरेशन होता है, लेकिन इसकी रफ्तार बहुत कम है। अक्सर यहां लेंस की कमी और अन्य बहाने बताकर मरीजों को लौटा दिया जाता है। वह निजी अस्पतालों में जाकर पैसा खर्च करते हुए परेशान होते हैं। तहसील स्तर के अस्पतालों में भी नेत्र ऑपरेशन की सुविधा मुकम्मल नहीं है। पट्टी में इस साल सर्जन की तैनाती हुई है, लेकिन कोई भी उपकरण वहां के ऑपरेशन थिएटर में नहीं है। इस कारण से ऑपरेशन नहीं हो पाता। बहुत साल से यहां पर सर्जन ही नहीं थे, आए तो मशीनों की कमी आड़े आ रही है। रानीगंज तहसील क्षेत्र की बात तो और भी निराली है। यहां के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के साथ ही ट्रामा सेंटर तक में आंखों के ऑपरेशन की सुविधा नहीं है। ना तो थिएटर बना है, और न डॉक्टर हैं। उपकरण भी कोई नहीं है। इस कारण मरीजों को जौनपुर, लखनऊ, प्रयागराज जाना पड़ता है। कुंडा में केवल एक अस्पताल में सुविधा मिली है। यानि जनपद के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में अधिकांश जगह आंखों के मोतियाबिद के ऑपरेशन की सुविधा कागजों तक सिमट गई है। कहीं सर्जन नहीं हैं तो कहीं ऑपरेशन थिएटर की व्यवस्था ठीक नहीं है। मजबूरी में लोग राजकीय मेडिकल कॉलेज आते हैं या फिर निजी अस्पतालों में भटकते रहते हैं। बहुत से लोग स्वयंसेवी संस्थाओं के कैंप में कराते हैं। हजारों लोग मुंशीगंज नेत्र चिकित्सालय का चक्कर लगाने को मजबूर होते हैं।
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जिले में नेत्र सर्जन मानक से कम हैं। कम से कम 10 होने चाहिए। शासन से डिमांड की गई है। मिलने पर समस्या दूर हो जाएगी।
-डा. एके श्रीवास्तव, सीएमओ
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