निवाले का भी हो गया संकट, लौट आए घर
कोरोना ने जिदगी पर ही नहीं आजीविका पर भी संकट खड़ा कर दिया। महानगरों में रोजी-रोटी कमाकर गृहस्थी की गाड़ी खींच रहे प्रवासी कामगार लोग बेकार हो गए। कोरोना का कहर बढ़ने पर लाकडाउन लगा तो जिदगी एक बार फिर ठहर सी गई। लोग वहां से लौट रहे हैं।
संसू, रानीगंज : कोरोना ने जिदगी पर ही नहीं, आजीविका पर भी संकट खड़ा कर दिया। महानगरों में रोजी-रोटी कमाकर गृहस्थी की गाड़ी खींच रहे प्रवासी कामगार लोग बेकार हो गए। कोरोना का कहर बढ़ने पर लाकडाउन लगा तो जिदगी एक बार फिर ठहर सी गई। लोग वहां से लौट रहे हैं।
क्षेत्र के गांव बाबू पट्टी गांव के संजय श्रीवास्तव पत्नी नीलू श्रीवास्तव व बेटे अभिषेक श्रीवास्तव के साथ मुंबई में दश्कों से रहते थे। संजय कपड़ा सिलाई का काम करते थे। उसी से खर्च चल जाता था। बच्चे को वहीं पर पढ़ा रहे थे। तीज-त्यौहार पर घर आते थे। सब ठीक से चल रहा था कि इसी बीच लाकडाउन लग गाया। काम बंद हो गया। जो रखा था उससे पेअ भरा, लेकिन यह पंजी महज 15 दिन ही काम चला सकी। इसके बाद निवाला मुश्किल दिखने लगा। ऐसे में मरते क्या न करते, अपने एक जिगरी दोस्त से पैसे उधार लेकर ब्लैक में रेल टिकट खरीदा। पत्नी बेटे के साथ मुंबई से तुलसी ट्रेन पकड़कर प्रयागराज पहुंचे। वहां से रानीगंज बाबू पट्टी अपने गांव पहुंचने पर थोड़ा सुकून मिला। संजय ने बताया कि जंक्शन पर उतरे तो कोई जांच नहीं हुई। तमाम लोग बिना मास्क के रहे। अब घर आकर सब्जी की खेती करने की योजना है, लेकिन पूंजी की कमी है। भविष्य अनिश्चित है, देखिए क्या होता है। हां इतना जरूर है कि यहां आने पर कम से कम दो रोटी तो मिल ही जाएगी। कमरे का भाड़ा समेत अन्य खर्च की बचत होगी। जिस तरह से कोरोना हर दिन बढ़ रहा है, उससे तय है कि लाकडाउन लंबा खिच सकता है। अब यहीं पर बच्चे का एडमिशन कराना होगा।