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चंदन से सजे भगवान भोले, महकी आस्था

कल-कल बहती सई। धाराओं में अजब उमंग जैसे वह शिवजी के चरण पखारने को आतुर हो। ढलते स

By JagranEdited By: Published: Fri, 25 Sep 2020 11:38 PM (IST)Updated: Sat, 26 Sep 2020 05:00 AM (IST)
चंदन से सजे भगवान भोले, महकी आस्था
चंदन से सजे भगवान भोले, महकी आस्था

कल-कल बहती सई। धाराओं में अजब उमंग, जैसे वह शिवजी के चरण पखारने को आतुर हो। ढलते सूर्य देव की लालिमा हर कोने में रंग भर रही थी। इसी बीच भक्तों के दुलारे भगवान भोले के विशेष श्रृंगार की बेला आ गई। बाबा का श्रृंगार चंदन से होने लगा तो मंदिर के साथ अगाध आस्था भी महक उठी। पुरोहितों के कई स्वर मिलकर गर्जना में बदल गए। जब उनकी साज-सज्जा पूरी हुई तो देखकर भक्तों के पोर-पोर मगन हो गए।

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बाबा घुइसरनाथ का श्रृंगार सायंकाल करने की यहां की परंपरा खास है। यह जैसा होता है, जिस तरह किया जाता है जागरण ने श्रद्धालुओं तक वैसा ही पहुंचाने का प्रयास किया। गुरुवार को सायंकाल बेला के साढ़े छह बज रहे थे। पूरे दिन दूर-दूर से आए श्रद्धालु दर्शन करके जा चुके थे। मंदिर के महंत मयंक भाल गिरि सई का पावन जल लेकर आते हैं। बाबा को स्नान कराना है। अतुल शुक्ल, शीतला प्रसाद गिरि, कुश गिरि, ऋषिकेश गिरि बाबा को मल-मलकर नहलाते हैं। हरिश्चंद्र यादव, राम आसरे, सूरज शर्मा मिलकर पूरे गर्भ गृह की सफाई करने लगते हैं। अनिल गिरि बाबा को वस्त्र पहनाते हैं। इसके बाद तांबे का नाग शिव के गले में सोहने लगता है। दीवानगंज से बाबी माली गमकते पुष्पों की माला लेकर आया था। वह शिव को नमन कर उनका श्रृंगार करने लगता है। गर्भगृह फूलों से सज जाता है।

उधर कपाट के बाहर कई भक्त बाबा के तैयार होने की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। वह बार-बार कपाट की ओर देखते हैं कि अब खुला.तब खुला। शाम 7:40 बजे बाबा पर चंदन का लेपन शुरू होता है। मृत्युंजय मिश्र, अंजनी शर्मा, प्रेमचंद चंदन के साथ ही रोली, कुमकुम, वस्त्र, प्रसाद, दूब आदि से बाबा को सजाते हैं। इसके बाद महंत मयंक भाल मुकुट व छत्र, लेकर आते हैं तो मंदिर गगनभेदी जयकारों से गूंज जाता है। विशेष मंत्रों के साथ बाबा को माल्यार्पण किया जाता है। कपाट खोल दिया जाता है। इसी पल की प्रतीक्षा कर रहे लाल बृजेश प्रताप सिंह, पुजारी श्रीराम गिरि, पडित वीरेंद्र मणि, सुजीत तिवारी, संजीव सिंह, राहुल गुप्ता, रोहित तिवारी, चंद्र कांत पांडेय, लकी गुप्ता, लवकुश आदि दर्शन को टूट पड़ते हैं। धाम का कण-कण आस्था के रंग में रंग जाता है। इसके बाद आरती होने लगती है।

शिवजी विशेष श्रृंगार से बहुत प्रसन्न होते हैं। वह सोने-चांदी से नहीं प्रकृति से जुड़ी सामग्री से सजने वाले महादेव हैं। पूरे अधिमास, सावन में खास सजावट की जाती है। आरती भोर व सांयकाल होती है।

-मयंक भाल गिरि, महंत


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