नहीं मानी हार, खस की खेती से मिला हाथों को काम
खेती-बाड़ी में आने वाले तमाम अवरोधों के बावजूद प्रतापगढ़ के सांगीपुर ब्लाक के मुस्तफाबाद के इस किसान ने हार नहीं मानी।
चंद्रशेखर तिवारी/शत्रुघ्न पांडेय, लालगंज : खेती-बाड़ी में आने वाले तमाम अवरोधों के बावजूद प्रतापगढ़ के सांगीपुर ब्लाक के मुस्तफाबाद के इस किसान ने हार नहीं मानी। मुश्किलों पर जीत हासिल करते हुए आज वह कामयाबी की सीढि़यां चढ़ रहा है।
उदयपुर के पूरे चौहान मुस्तफाबाद निवासी प्रगतिशील किसान राजेश सिंह ने अपने गांव में खस की खेती को आय का प्रमुख स्त्रोत बना लिया है। बकौल राजेश खस की खेती में इसकी जड़ का विक्रय किया जाता है। जड़ से तेल निकाला जाता है, जो सेंट बनाने में काम आता है। इसमें लागत कम व मुनाफा अधिक है। इसे मवेशी नहीं पूछते। उनको देखकर गांव के दर्जनों लोग भी इसे रोजगार का जरिया बना रहे हैं। राजेश कहते हैं कि खस एक झाड़ीनुमा फसल है। इसकी खेती हर तरह की जमीन, मिट्टी और जलवायु में हो सकती है। यह फसल वर्ष में एक बार की जाती है। रोपाई दिसंबर से जनवरी के बीच होती है। इस फसल को तैयार करने में लागत कम लगती है और मुनाफा अधिक मिलता है। एक बीघा में फसल की लागत लगभग 55 से 60 हजार रुपये आती है। जबकि एक बीघा की फसल में मुनाफा डेढ़ से पौने दो लाख तक हो जाता है। खस की जड़ों से निकलने वाला तेल काफी महंगा बिकता है। तेल का उपयोग इत्र, सुगंधित पदार्थ, सौंदर्य प्रसाधनों तथा दवाइयों में भी होता है। प्रगतिशील किसान राजेश आज खस की खेती करते हुए न केवल खुद मुनाफा कमा रहे हैं, बल्कि उनसे प्रेरणा लेकर पूरे चौहान के राजा राम यादव, विजय बहादुर वर्मा, बृजेंद्र सिंह, हरिकेश सिंह, पूरे सोनप्रान के विजय सिंह, संजय सिंह, महमूदपुर के रामेर्श्वर वर्मा, त्रिभुवन पटेल, पुत्ती लाल व अन्य किसान खस की खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं।