खेती का बदला ढंग, जीवन में आया रंग
एक प्रगतिशील किसान ने मायने ही बदल डाला। उसने मूली-गाजर गन्ने की खेती करके गरीबी की जड़ें उखाड़ दीं। खेती का ढंग बदलते ही उसके जीवन में खुशियों के रंग बिखरने लगे।
दया शंकर तिवारी, अजगरा : कहते हैं कि यह कोई मूली-गाजर नहीं है, जो उखाड़कर फेंक दोगे। इस कहावत का एक प्रगतिशील किसान ने मायने ही बदल डाला। उसने मूली-गाजर, गन्ने की खेती करके गरीबी की जड़ें उखाड़ दीं। खेती का ढंग बदलते ही उसके जीवन में खुशियों के रंग बिखरने लगे।
जिले के लालगंज के मुल्तानी साहबगंज के गांव के किसान हैं कल्लू मौर्या। यह खुद तो उतने पढ़े नहीं हैं, पर अपने पुत्र रमाशंकर को कृषि में स्नातक करने को केएनआइ सुलतानपुर भेजा। वह खेती में मिसाल बनने का सपना अपने पुत्र के जरिए संजोए थे। धान-गेहूं की खेती पर मौसम की मार, नीलगाय जंगली सुअर के हमले से बर्बादी उनसे जब बर्दाश्त नहीं हुई तो वह कुछ बदलाव की तैयारी में जुट गए। बेटा रमा शंकर मौर्या पढ़ाई के दौरान संस्थान के आसपास के गांव में किसानों के बीच जाता रहा। वहां पर फसलों को रोपाई के समय जाकर देखा। उसके टिप्स समझे। बीज शोधन, बोआई, खाद, पानी, निराई के बारे में जानकारी हासिल की। इसके बाद जब पढ़ाई पूरी करके घर आया तो पिता से कहकर एक बीघा गन्ना बोया। फसल अच्छी हुई, पर इसी बीच कोरोना की मार से सब ठप होने से नुकसान हो गया। इसके बाद भी पिता-पुत्र ने हिम्मत नहीं हारी। फिर से 10 बिस्वा गन्ना की खेती कर ली। इससे फायदा हो रहा है। बाकी के खेत में किसान ने मूली, गाजर, शलजम, पालक, बैगन, टमाटर व हल्दी की खेती की। इससे खूब फायदा हुआ। पास के अजगरा, शमशेरगंज, लालगंज, सगरा, मोहनगंज बाजार में जमकर बिक्री हुई। इससे जो हौसला मिला उससे इनके पांव नगदी फसल की ओर और तेजी से बढ़ चले हैं।
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नई पीढ़ी में जगाएं रुचि
किसान कल्लू और रमा शंकर का कहना है कि किसान अपने बच्चों को कृषि की रुचि पैदा करें। खेती में बहुत कुछ है। किस्मत बदलने की इसमें शक्ति है। धान-गेहूं केवल अपने खाने भर को ही पैदा करें, कमाने वाली खेती को अपनाएं।
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ब्लाक स्तर पर हो मंडी
स्थानीय स्तर पर मंडी की सुविधा न होने से ऐसे किसानों में कुछ मायूसी भी है। वह कहते हैं कि सरकार को ब्लाक स्तर पर भी मंडी की स्थापना करनी चाहिए। इससे लघु किसान भी आत्मनिर्भर बन सकेंगे।