..और जैन साहब के थप्पड़ से सुधर गया जीवन
प्रतापगढ़ : वह भी क्या दिन थे, जब हम एक साथ रह कर पढ़ाई किया करते थे। साथ पढ़ने वाले बलर
प्रतापगढ़ : वह भी क्या दिन थे, जब हम एक साथ रह कर पढ़ाई किया करते थे। साथ पढ़ने वाले बलराम के मारने से हाथ टूट गया था और ¨प्रसिपल जैन साहब के थप्पड़ ने ¨जदगी संवार दी। शुक्रवार के दिन एक घंटे का इंटरवल होता था। उसमें हम लोग जमकर गिल्ली-डंडा खेलते थे। कब एक घंटे बीत जाया करते थे, पता ही नहीं चलता था। यह कहना था शासन के अपर मुख्य सचिव आलोक सिन्हा का। वह शनिवार को राजकीय इंटर कालेज (जीआइसी) में आयोजित पुरातन छात्र सम्मेलन में भाग लेने आए थे।
यहां पहुंचने पर उनके सहपाठी अधिवक्ता विजय श्रीवास्तव जब गले मिले तो दोनों मित्र खुशी से खिलखिला उठे। अपनी यादें ताजा करते हुए आलोक सिन्हा ने बताया कि पहले हम लोग गिल्ली डंडा, गेंदतड़ी व कबड्डी खेला करते थे। गेंदतड़ी खेलते समय साथ पढ़ने वाले बलराम ने ऐसी गेंद मारी कि मेरा हाथ टूट गया। अपने पुराने दिन याद करते हुए उन्होंने बताया कि वह कक्षा नौ ब में थे और कक्षा में सबसे आगे बैठे थे। साथ पढ़ने वाला हबीब मारपीट कर रहा था। तभी ¨प्रसिपल जैन साहब कक्षा में आ गए और जो थप्पड़ मारा कि उससे ¨जदगी बदल गई। उसी का परिणाम रहा कि मैं वर्ष 1976 में हाईस्कूल की परीक्षा में यूपी टॉपर रहा। यहीं की गई साधना से आइएएस भी बन सका। शिक्षक राम मुरैला उपाध्याय की बातें याद करते हुए उन्होंने कहा कि उनके शब्द आज भी याद हैं। शांत रहिए, आप सब जीआइसी के छात्र हैं। उन्होंने कहा कि आज वह जो कुछ हैं जीआइसी की बदौलत हैं। सम्मेलन में सहभागिता करने आए इक्सलेंस रिसर्च सेंटर रीवां के भूपेंद्र कुमार ¨सह ने कहा कि यह वही जगह है, जहां थरथराते हुए आते थे। उस समय यह हाल बहुत बड़ा लगता था, आज हाल छोटा पड़ गया है। यहां पहुंचने पर सारा ज्ञान गायब हो जाता था। जो याद रहता वह भी भूल जाता था। आ रहा था तो सोच रहा था कि जैन साहब कहीं देख न लें। उनका आशीर्वाद हमारे साथ है। उन्होंने कहा कि छात्र कभी पुरातन नहीं होता, गुरु हमेशा गुरु रहता है। वरिष्ठ अधिवक्ता विजय श्रीवास्तव ने कहा वर्ष 1971 में जीआइसी में शुरू हुए पहले बैच में वह रहे। आलोक सिन्हा, नवनीत, बलराम, उदयभानु, राजीव आहूजा साथ पढ़ते थे। आलोक सिन्हा (अपर मुख्य सचिव) अपनी शर्ट की बांह में डंडा छिपाकर लाते थे। वहीं जीजीआइसी सुलतानपुर के अंग्रेजी शिक्षक अनिल ¨सह ने कहा कि कृषि के अध्यापक हृदय नारायण मिश्र ने जो मुक्का मारा था, वह आज भी उन्हें याद है। उस मुक्के से उनका जीवन सफल हो गया।