युवा करें भारतीय संस्कृति का सम्मान: अमलजिथ
भारतीय नृत्य परंपरा कथकली में महारत हासिल कर चुके अमलजिथ मौजूदा परिवेश में भारतीय संस्कृति से विमुख हो रहे युवाओं को लेकर खासे चितित हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का दुनिया में सर्वश्रेष्ठ स्थान है। यही वजह है कि भारत को सांस्कृतिक विविधताओं का देश कहा जाता है।
जागरण संवाददाता, पीलीभीत: भारतीय नृत्य परंपरा कथकली में महारत हासिल कर चुके अमलजिथ मौजूदा परिवेश में भारतीय संस्कृति से विमुख हो रहे युवाओं को लेकर खासे चितित हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का दुनिया में सर्वश्रेष्ठ स्थान है। यही वजह है कि भारत को सांस्कृतिक विविधताओं का देश कहा जाता है। देश की युवा पीढ़ी पर पश्चिमी सभ्यता का तेजी से असर हो रहा है, जिससे भारतीय संस्कृति पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। लिहाजा युवाओं को भारतीय संस्कृति का सम्मान करके ही आगे बढ़ना चाहिए।
मंगलवार को शहर के चिरौजी लाल वीरेंद्र पाल सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज में कथकली नृत्य की प्रस्तुति देने पहुंचे अमलजिथ ने यह बात जागरण से बातचीत के दौरान कही। 25 मई 1974 को केरल के अलेप्पी में जन्मे कलमंडलम अमलजिथ 12 की उम्र से पारंपरिक नृत्य कथकली करते आ रहे हैं। पूरे भारतवर्ष में स्पिक मैके व अन्य संस्थाओं के माध्यम से कथकली का प्रदर्शन किया है। अमलजिथ अमेरिका, फ्रांस, थाईलैंड, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, पेरू, क्यूबा, वियतनाम समेत लगभग 21 देशों में भारतीय नृत्य परंपरा कथकली को प्रस्तुत कर दर्शकों का मन मोह चुके हैं। एक सवाल के जवाब में अमलजिथ ने कहा कि लोग अपनी विरासत व संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। स्पिक मैके जैसी संस्थाएं ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों के मन मस्तिष्क में भारतीय संगीत, नृत्य व परंपरा को जीवंत रखने का प्रयास कर रही हैं। उन्होंने युवाओं के लिए संदेश दिया कि युवाओं को अपनी संस्कृति से स्नेह कर सम्मान करना चाहिए। भारत अपनी कला संस्कृति में बहुत समृद्ध है, इसके प्रचार प्रसार के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए। हम सभी कलाकार अपनी प्रस्तुति के द्वारा समाज को कला की समृद्धता से परिचित कराने का प्रयास करते हैं। कलमंडलम अमलजिथ को केपीएस मेनन पुरस्कार, केंद्रीय संगीत नाट्य अकादमी द्वारा उस्ताद बिस्मिल्लाह ़खां युवा पुरस्कार, डॉ. गुरु गोपीनाथ पुरस्कार समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।