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हम भी दिल की बात कहां कह पाते हैं..

पीलीभीतजेएनएन बांसुरी महोत्सव के समापन की रात ड्रमंड राजकीय इंटर कालेज में काव्यरस धारा की वर्षा में हर श्रोता भीगने को उत्साहित दिखाई दिया। शीतलहर व कड़ाके की ठंड के बीच रविवार की रात करीब डेढ़ बजे तक श्रोता बैठे रहे। प्रख्यात शायर वसीम बरेलवी समेत 10 रचनाकारों ने काव्यपाठ कर मह़िफल को रसमयी बना दिया। कवि सम्मेलन की शुरुआत डा. रुचि चतुर्वेदी ने सरस्वती वंदना से की। इसके बाद स्थानीय कवि जीतेश राज नक्श ने अपने शायरियों से वाहवाही लूटी।

By JagranEdited By: Published: Mon, 20 Dec 2021 11:57 PM (IST)Updated: Mon, 20 Dec 2021 11:57 PM (IST)
हम भी दिल की बात कहां कह पाते हैं..
हम भी दिल की बात कहां कह पाते हैं..

पीलीभीत,जेएनएन: बांसुरी महोत्सव के समापन की रात ड्रमंड राजकीय इंटर कालेज में काव्यरस धारा की वर्षा में हर श्रोता भीगने को उत्साहित दिखाई दिया। शीतलहर व कड़ाके की ठंड के बीच रविवार की रात करीब डेढ़ बजे तक श्रोता बैठे रहे। प्रख्यात शायर वसीम बरेलवी समेत 10 रचनाकारों ने काव्यपाठ कर मह़िफल को रसमयी बना दिया। कवि सम्मेलन की शुरुआत डा. रुचि चतुर्वेदी ने सरस्वती वंदना से की। इसके बाद स्थानीय कवि जीतेश राज नक्श ने अपने शायरियों से वाहवाही लूटी। कवि सिद्धार्थ मिश्र ने श्रंगार व ओज की कविताएं सुनाकर लोगों का प्यार व तालियां बटोरीं। हास्य कवि अरुण जैमिनी को सुनने के लिए दर्शक लालायित दिखाई दिए। अपने चुटीले अंदाज के लिए प्रसिद्ध अरुण जैमिनी ने बांसुरी नगरी के श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। व्यंगात्मक अंदाज में सुनाई गई रचनाओं को लोगों ने खूब सराहा।

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इसके बाद इंदौर के गीतकार अमन अक्षर ने रामगीत पढ़कर राम के चरित्र की सुंदर तस्वीर उकेरी। उनके गीत में राम का भाव समाहित रहा। वनगमन के कारण पर अमन ने कहा कि राजपाठ त्याग पुण्य काम की तलाश में, तीर्थ खुद भटक रहे थे धाम की तलाश में। न तो दामना किसी ही नाम की तलाश में, राम वन गए थे अपने राम की तलाश में।

आगरा से पधारीं कवयित्री डा. रुचि चतुर्वेदी ने सीमा पर तैनात जवान की पत्नी के मनोभावों का वर्णन करते हुए भावुक गीत सुनाया। उन्होंने कहा कि लाल महावर लगे मेरे इन पांव की चिता मत करना। सीमा पर जागे रहना तुम गांव की चिता मत करना। ठिठुरन हो या कड़ी धूप हो तुम छांव की चिता मत करना। लगे युद्ध में चोट अगर तो घाव की चिता मत करना। धन्य-धन्य हो जाऊंगी छूकर तेरे घायल पांव रे, राह निहारूं कब से तेरी बैठी पीपल छांव रे। डा. रुचि के गीत के बाद लोगों ने भारत माया की जय और वंदे मातरम के उद्घोष से उन्हें साधुवाद प्रेषित किया।

विश्व विख्यात शायर प्रोफेसर वसीम बरेलवी ने गजल पेश करते हुए कहा कि बीते हुए दिन खुद को जब दोहराते हैं, एक से जाने कितने हम हो जाते हैं। हम भी दिल की बात कहां कह पाते हैं, आप भी कुछ कहते कहते रह जाते हैं। खुशबू अपने रस्ते खुद तय करती है, फूल तो डाली के होकर रह जाते हैं। रोज नया किस्सा कहने वाले लोग, कहते कहते खुद किस्सा हो जाते हैं। घर के अंदर बेटियों के महफूज न होने पर चिता व्यक्त करते हुए वसीम बरेलवी ने कहा कि कौन बचाएगा फिर तोड़ने वालों से, फूल अगर शाखों से धोखा खाते हैं। अंत में उन्होंने पढ़ा तेरी आंखों में ऐसी तहरीरें हैं, पढ़ने वाले भी मानी हो जाते हैं।

कवि अविनाश चंद्र मिश्र व एकता भारती ने भी काव्यपाठ कर तालियां बटोरीं। संचालन मध्यम सक्सेना ने किया। कवियों को शहर विधायक संजय सिंह गंगवार, जिलाधिकारी पुलकित खरे, उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल के जिलाध्यक्ष अनूप अग्रवाल व जिला महामंत्री शैली अग्रवाल ने प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। नगर मजिस्ट्रेट डा. राजेश कुमार, एसडीएम सदर योगेश कुमार गौड़, जिला अर्थ एवं सांख्यिकी अधिकारी नरेंद्र यादव, बीएसए चंद्रकेश सिंह, ललौरीखेड़ा ब्लाक प्रमुख अजय सिंह गंगवार, संजीव पाराशरी, स्वतंत्र देवल, जगदीश सक्सेना, फराह अनवर, सरजीत सिंह, राजवीर सिंह आदि उपस्थित रहे।


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