कहां गायब हो गई बराही रेंज की बाघिन
वन विभाग के बड़े अधिकारी इस बार उस कहानी में ही उलझते नजर आ रहे हैं।
पूरनपुर (पीलीभीत) : वन विभाग के बड़े अधिकारी इस बार उस कहानी में ही उलझते नजर आ रहे हैं जो उन्होंने दो शावकों की 40 दिनों के अंतराल में शव मिलने पर बचाव के लिए गढ़ी थी। अगर सुअर का संक्रमित मांस खाकर दोनों शावकों की मौत हुई तो बाघिन किस हाल में और कहां होगी, यह जानने की जरूरत वन विभाग के किसी अधिकारी ने अब तक नहीं समझी। कहीं बाघिन का भी तो शावकों जैसा हाल नहीं हुआ है, इस पर खोजबीन करने की जरूरत है।
बाघों को संरक्षण देने के लिए समाजवादी पार्टी के शासनकाल में पीलीभीत के वनों को टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था। शासन की मंशा थी कि वनों को टाइगर के लिए रिजर्व करने के बाद यहां मौजूद बाघ संरक्षित होंगे एवं उनका कुनबा निरंतर बढ़ता जाएगा। यह बात सच साबित हुई। बाघों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। बावजूद इसके बाघों के मरने का सिलसिला भी जारी है जो वन्यजीव प्रेमियों के लिए ¨चता का विषय बना हुआ है। इसी वर्ष चार बाघ एवं एक तेंदुआ का शव मिलने के बाद वन्यजीव प्रेमी ¨चता में पड़ गए हैं। वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर बाघों की लगातार मौतें क्यों हो रही हैं। इसके पीछे असली वजह क्या है विगत 11 अप्रैल को खारजा नहर पर एक शावक का शव मिला था। 20 अप्रैल को दूसरे शावक का शव मिला तो वन विभाग के अधिकारियों ने बचाव के लिए कहानी गढ़ना शुरू कर दिया। बरेली वृत्त के वन संरक्षक पिनाकी प्रसाद ¨सह ने बताया कि बराही रेंज में एक बाघिन दो शावकों के साथ घूम रही थी। बाघिन द्वारा जिस जंगली सुअर का शिकार किया गया था। सुअर संक्रमित था। संक्रमित मांस खाने से ही 11 अप्रैल को बाघ के शावक की मौत हुई थी। 20 मई को दूसरे शावक की मौत को भी इसी उसी सुअर का संक्रमित मांस खाने से होने की आशंका उन्होंने जाहिर की। ऐसे में अगर उनकी इस कहानी पर एतबार कर लिया जाए तो जो नई बात निकल कर आ रही है, वह यह कि अगर सुअर का शिकार करने के बाद शावकों के साथ बाघिन ने भी तो वही संक्रमित मांस जरूर खाया होगा। ऐसे में कहीं बाघिन का हाल भी तो शावकों जैसा नहीं हुआ। यह एक खोज का विषय हो सकता है। वनाधिकारी अगर तलाश करें तो यह पता लगेगा की वह बाघिन जीवित है अथवा नहीं और अगर है तो कहां किस स्थिति में है। हालांकि अधिकारियों की कहानी सुनकर वन्यजीव प्रेमी काफी निराश हैं। उनका कहना है कि अधिकारियों को कुछ ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि वन्य जीव जंगल से बाहर ना निकले। अन्यथा इसी तरह असमय काल के गाल में समाते चले जाएंगे। उधर वनाधिकारियों का दावा है कि बाघिन सही सलामत है। हो सकता है कि बाघिन ने संक्रमित मांस न खाया हो। वन संरक्षक का कहना है कि गणना के दौरान उस बाघिन का चित्र कैमरे में आने पर स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।