तिहाई बीज में तिगुना कर दिया गन्ना उत्पादन
औंजला ने लिखी किसानी की नई इबारत, पुरखों से मिले हुनर की खेती में कृषि वैज्ञानिकों के ज्ञान का ‘खाद-पानी’ डाला तो फसल ऐसी लहलहाई कि उत्पादन बढ़ गया
पीलीभीत (लोकेश प्रताप सिंह)। वह बहुत पढ़े-लिखे तो नहीं हैं, लेकिन कढ़े भरपूर हैं। पुरखों से मिले हुनर की खेती में कृषि वैज्ञानिकों के ज्ञान का ‘खाद-पानी’ डाला तो गन्ने की फसल ऐसी लहलहाई कि उत्पादन दोगुने से भी अधिक पहुंच गया। अब दूर-दूर से प्रगतिशील किसान न केवल उनकी किसानी देखने आते हैं, बल्कि किसानों ने यह फार्मूला भी अख्तियार करना शुरू कर दिया। बात हो रही है पीलीभीत के युवा किसान हरप्रीत सिंह औंजला की।
पतले बांस के मानिंद मोटा और 18-20 फीट ऊंचा गन्ना सफलता की नई इबारत लिख रहा है। 1960 में यहां की पानीदार उर्वर भूमि देखकर कश्मीर सिंह औंजला पंजाब में अपनी थोड़ी बहुत जमीन बेचकर यहां आ गए थे। तब यहां की जमीन पर खेती न के बराबर होती थी। हाड़तोड़ मेहनत से उस भूमि को खेती योग्य बना लिया। उनकी किसानी इलाके में मिसाल बनने लगी। पिता की इसी विरासत को उनके पुत्र जसवीर सिंह औंजला ने आगे बढ़ाया। करीब 40 एकड़ खेती कर ली। जसवीर सिंह ने अपने पुत्र हरप्रीत सिंह को भी पूरी तरह खेती से जोड़ लिया।
साठा का विरोध : इलाके के अधिकांश किसान धान की दो फसल (एक फसल साठा की) पैदा करते थे, लेकिन हरप्रीत सिंह ने इसका विरोध किया। लोगों को भी समझाया कि फसल चक्र बिगाड़ने के बजाय लोग कम फसल में ही बेहतर उत्पादन ले सकते हैं। ऐसा प्रयोग तीन साल पहले उन्होंने गन्ने पर किया, जिसमें गन्ने के बीज की दूरी बढ़ाई और जैविक खाद का उपयोग किया। इस प्रयोग से गन्ने की बियास (ज्यादा किल्ले निकले) बढ़ी।
ऐसे बदली किस्मत : इसी बीच उनकी मुलाकात गन्ना इंस्पेक्टर शिवराज यादव से हुई तो उन्होंने बिजनौर स्थित उत्तम सुगर फैक्ट्री ले जाकर उन्नतिशील खेती का प्रशिक्षण दिलवाया। इसके बाद इसी प्रशिक्षण के मुताबिक हरप्रीत सिंह ने गन्ने का सिर्फ एक गांठ वाला बीज निकाला, जबकि पहले तीन गांठ वाले बीज बोये जाते थे। खेत में जैविक खाद डालने के बाद शोधित बीज को डेढ़ फीट की दूरी पर बोया गया तथा कूड़ से कूड़ की दूरी 4.5 फीट रखी। इस विधि से मात्र 37 क्विंटल प्रति हेक्टेअर बीज लगा, जबकि सामान्य रूप से करीब 90 से 100 क्विंटल गन्ना बीज प्रति हेक्टेअर में बोया जाता है।
सामान्य गन्ने से अधिकत उत्पाद : सामान्य रूप से तीन गांठ वाले बीज में सिर्फ दो गांठ से ही कल्ले निकलते हैं। बीच वाली गांठ बेकार जाती है। इसमें भी एक बीज से 6-7 कल्ले ही निकलते हैं। खेत में पोटाश, सुपर, नीम की खली और हड्डी की खाद डाली। इसके बाद खेत में गन्ना जहां सामान्य से 2-3 गुना अधिक मोटा हुआ, वहीं ऊंचाई भी 18 से 20 फीट तक पहुंच गई।
जबकि सामान्य रूप से उन्नतिशील गन्ने की भी ऊंचाई मात्र 12 से 14 फीट ही होती है। इस प्रकार जहां जिले में गन्ने का औसत उत्पादन 701.52 क्विंटल प्रति हेक्टेअर है, वहीं हरप्रीत प्रति हेक्टेअर में 2100 से 2200 क्विंटल गन्ने की फसल पैदा कर रहे हैं। हरप्रीत औजला को देखकर इलाके के धनजीत सिंह, बलजीत सिंह, राजवीर सिंह, गुरुचरन सिंह समेत दर्जनों किसानों ने इस साल यही विधि अपनाई है।
खेत में गन्ने की पत्ती जलाने के बजाय सड़ाई गई थे, जिससे कार्बनिक तत्व नष्ट नहीं होने पाए, इसके अलावा जैविक खाद का उपयोग किया गया। करीब पांच दर्जन से अधिक किसान इसी विधि का प्रयोग कर रहे हैं। इस विधि के प्रचार-प्रसार से कुछ ही वर्षों में जिले में गन्ने का उत्पादन काफी बढ़ सकता है। हरप्रीत औंजला का नाम प्रदेश स्तर पर सम्मानित किए जाने के लिए भी भेजा जाएगा।
-राजेश्वर यादव, जिला गन्ना अधिकारी, पीलीभीत
युवा किसान हरप्रीत सिंह