दीपा करमाकर की प्रेरक कहानी
अपने मजबूत हौंसले और बुलंद इरादों से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है।
अपने मजबूत हौंसले और बुलंद इरादों से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। चाहे वह कार्य कितना भी कठिन क्यों न हो। यह बात सिद्ध की है हमारे देश की जिमनास्ट दीपा करमाकर ने। दीपा करमाकर का जन्म नौ अगस्त 1993 को अगरतला में हुआ था। दीपा करमाकर के पिता दुलाल करमाकर राष्ट्रीय वेटलि¨फ्टग चैंपियन रहे हैं। उनके माता-पिता बचपन से ही चाहते थे कि दीपा जिमनास्टिक में ही अपना भविष्य बनाए। अपनी माता-पिता की इच्छा का सम्मान करने के लिए ही दीपा ने छह वर्ष की आयु में ही जिमनास्टिक का प्रशिक्षण लेना शुरू किया। दीपा कर यह सफर आसान नहीं था, क्योंकि इनका पैर चपटा था, जबकि जिमनास्ट के लिए पैर का तलबा समतल अच्छा नहीं माना जाता है, लेकिन दीपा ने ठान लिया था कि उन्हें जिन्मास्टिक में ही कॅरियर बनाना है और उनकी इसी ²ढ़ इच्छा शक्ति ने उनका पैर समतल से वक्राकार में परिवर्तित कर दिया।
भारत में जिमनास्टिक की बहुत लोकप्रियता नहीं है। इसलिए दीपा को प्रशिक्षण के लिए अच्छे उपकरण भी उपलब्ध नहीं हो पाते थे। उनकी गुरुमाता विश्वेश्वर नंदी के लिए स्कूटर के पार्ट्स से स्प्रिंग बोर्ड तैयार किए और कारों की पुरानी सीट से गद्दे बनवाए गए। दीपा की कड़ी मेहनत का रंग वर्ष 2007 में दिखाई देना प्रारंभ हुआ, जहां दीपा ने जलपाईगुढ़ी में नेशनल जिमनास्टिक की जूनियर वर्ग में जीत हासिल की। इन्होंने वर्ष 2014 में ग्लासगो (चीन) में राष्ट्रमंडलन खेल में स्वर्ण पदक जीतकर भारत को गौरवान्वित किया। इसके साथ ही उन्होंने वर्ष 2016 में ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला बनी। दीपा प्रोडुनोवा वाल्ट को सफलतापूर्वक करने वाली विश्व की पांच महिला जिमनास्ट में से एक हैं। इनकी इन सभी उपलब्धियों को सम्मानित करने हेतु भारत सरकार ने उन्हें 2015 में अर्जुन पुरस्कार से अलंकृत किया। इसके साथ साथ दीपा को राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार एवं पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।
मेरा भारत एवं सभी राज्यों की सरकारों से यह आग्रह है कि खेल जगत की सभी उभरती हुई प्रतिभाओं को दीपा करमाकर जैसी समस्याओं से न जूझना पड़े। इनके लिए प्रत्येक स्तर पर सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं तथा प्रतिभाओं का चयन पूरी पारदर्शिता के साथ किया जाए। हम केवल कुछ चंद खेलों में सिमट कर न रह जाएं। आज भी हमारे देश में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। कमी है उन्हें उचित संसाधन प्रदान करने की। हमारी युवा पीढ़ी के लिए दीपा करमाकर एक जीवंत उदाहरण हैं।
-डॉ.अजय सक्सेना, प्रधानाचार्य
राजकीय इंटर कालेज, पौटा कलां (पीलीभीत)