पशु अस्पतालों में स्टाफ का टोटा, कैसे हो इलाज
जनपद में पशु चिकित्सा व्यवस्था भी बदहाल है। ज्यादातर पशु चिकित्सालयों में स्टाफ का टोटा है। हालात यह हैं कि कहीं डॉक्टर नहीं है तो कहीं फार्मासिस्ट। ऐसे में पशु पालकों को इलाज के लिए दूर दराज स्थानों पर जाना पड़ता है।
जागरण संवाददाता पीलीभीत: जनपद में पशु चिकित्सा व्यवस्था भी बदहाल है। ज्यादातर पशु चिकित्सालयों में स्टाफ का टोटा है। हालात यह हैं कि कहीं डॉक्टर नहीं है तो कहीं फार्मासिस्ट। ऐसे में पशु पालकों को इलाज के लिए दूर दराज स्थानों पर जाना पड़ता है।
तराई क्षेत्र का यह जिला कृषि पर निर्भर है। जाहिर है कि यहां पशु पालकों भी खासी संख्या है। सरकार की ओर से पशु पालकों के लिए पशु चिकित्सालय व पशु सेवा केंद्रों का संचालन किया जा रहा है। लेकिन मझोला, कुलारा, दियोरिया कलां, भदेनकंजा, नौजल्हानकटा आदि स्थानों पर स्थित पशु अस्पतालों में डॉक्टरों की तैनाती ही नहीं है। वहीं अन्य पशु अस्पतालों में भी स्टाफ का टोटा है। कई अस्पताल ऐसे भी हैं, जहां पर डॉक्टरों की तो नियुक्त है, लेकिन वहां पर ड्रेसर, फार्मासिस्ट और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्त नहीं है। जिले में बने सोलह पशु सेवा केंद्रों में सिर्फ पांच ही कंपाउंडर तैनात हैं। बाकी स्थानों पर पद रिक्त पड़े हुए है। जिस कारण पशु पालकों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बरसाती मौसम में पशुओं को कई तरह की बीमारियां होती हैं। पशु अस्पतालों की स्थिति
जिले भर में 16 पशु चिकित्सालय, 29 पशु सेवा केंद्र 29 हैं। पशु सेवा केंद्रों में 13 डॉक्टर तथा पांच कंपाउंडर तैनात हैं। छह पद रिक्त पड़े हुए है। वहीं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी 39 होने चाहिए, लेकिन सिर्फ 20 कर्मचारी तैनात हैं। वहीं मझोला में तीन वर्षो से डॉक्टर ही नहीं हैं। इससे वहां के पशु पालकों को इलाज के लिए जिला पशु चिकित्सालय आना पड़ता है। एक ही डॉक्टर संभाल रहा कई अस्पताल
कुछ डॉक्टर हफ्ते में हर दिन अलग अलग अस्पतालों में जाकर पशुओं का इलाज कर रहे हैं। ऐसे में इन डॉक्टरों को तो दिक्कत होती है। वहीं पशु पालकों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। पशु पालक इलाज कराने के लिए डॉक्टर के आने का इंतजार करते रहते हैं। साफ सफाई पर ध्यान दें
बरसाती मौसम में अधिकांश पशुओं को मुंहपका, खुरपका जैसे बीमारियां होती रहती है। इन रोगों से बचाव के लिए पशु पालक उनके पास साफ सफाई का विशेष ध्यान देना बेहद जरुरी है। यह रोग पशु की जान भी ले सकता है।