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मृदा परीक्षण के प्रति किसानों में जागरूकता की कमी

मृदा अभियान - अधिकांश लोग मृदा स्वास्थ्य कार्ड का नहीं कर रहे उपयोग - मृदा परीक्षण के प्रति विभाग की ओर से की जाती है रस्म अदायगी -कृषि विभाग की ओर से मिट्टी के नमूनों की जांच की गई थी फोटो-1पीआइएलपी-24

By JagranEdited By: Published: Fri, 01 Nov 2019 06:33 PM (IST)Updated: Fri, 01 Nov 2019 06:33 PM (IST)
मृदा परीक्षण के प्रति किसानों में जागरूकता की कमी
मृदा परीक्षण के प्रति किसानों में जागरूकता की कमी

जागरण संवाददाता, पीलीभीत : कृषि विभाग की मानें तो जिले में 3.10 लाख किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड प्राप्त कराए जा चुके हैं,लेकिन इस कार्ड में की गई संस्तुति के आधार पर कितने किसान रसायनिक व कम्पोस्ट खाद का उपयोग कर रहे। सीधा जवाब किसी अधिकारी के पास नहीं है। स्थिति यह है कि तमाम किसानों के पास मृदा स्वास्थ्य कार्ड है ही नहीं। वे तो पहले से जितनी खाद का उपयोग करते आ रहे, उसी अनुपात में लगातार कर रहे हैं। खेतों की मिट्टी की जांच कराने, मृदा स्वास्थ्य कार्ड में की गई संस्तुति के आधार पर फसलों में उर्वरकों का इस्तेमाल करने के लिए किसानों को जागरूक करने के नाम पर सिर्फ रस्म अदायगी ही होती रही है। इसी वजह से किसानों की फसलों में लागत अधिक आ रही।

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केंद्र में पहली बार मोदी सरकार बनने के बाद वर्ष 2015-16, 17-18 और 18-19 में कृषि प्रसार विभाग की ओर से तीन चरणों में अभियान चलाकर किसानों के खेतों से मिट्टी के नमूने लेकर परीक्षण कराया गए। मिट्टी के नमूने सभी किसानों के खेतों से अलग-अलग नहीं लिए गए बल्कि एक निर्धारित एरिया को ग्रिड बनाकर मिट्टी का नमूना लिया गया। जागरूकता के अभाव अधिकतर किसानों ने इसमें कोई रुचि नहीं दिखाई। जिन्हें मृदा स्वास्थ्य कार्ड मिले भी, उन्होंने उसे घर के कोने में डाल दिया। अपने खेतों में विभिन्न फसलों में रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल परंपरागत रूप से करते रहे। पड़ोसी किसान ने जितनी खाद डाली, उसी पर उनका ध्यान रहा। अनेक ऐसे किसान हैं, जो यह मानकर चलते हैं कि किसी फसल में उनके पूर्वज जितनी खाद का इस्तेमाल करते रहे हैं, उतनी ही देना ठीक है। भले ही इसमें उनकी लागत अधिक खर्च हो रही है। कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शैलेंद्र सिंह ढाका मानते हैं कि जितने किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड दिए गए , उनमें से अधिकतम तीस फीसद लोग ही उसके आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करते हैं। शेष किसान अपने अनुमान के आधार पर ही उर्वरकों को विभिन्न फसलों में डालते हैं। फसलों में बढ़ जाती है किसानों की लागत

आमतौर पर किसान एक एकड़ फसल में चार से पांच कट्टा यूरिया खाद डाल देते हैं। बुवाई के समय इस्तेमाल की जाने वाली एनपीके के दो-तीन कट्टे उपयोग में लाते हैं। मृदा स्वास्थ्य कार्ड में की गई संस्तुति के आधार पर उनके खेत को इतनी मात्रा में खाद की जरूरत ही नहीं होती। दो कट्टा यूरिया डालने और इससे पहले बुवाई के समय एक कट्टा एनपीके डालने से भी उन्हें उतनी ही फसल की पैदावार मिल सकती है। इस जागरूकता के अभाव में ही किसानों की खेती में लागत बढ़ जाती है लेकिन पैदावार उतनी ही रहती है। मोदी सरकार ने इसी वजह से मृदा स्वास्थ्य परीक्षण पर सबसे ज्यादा जोर दिया, जिससे किसानों की लागत घट से सके लेकिन विभागीय अधिकारी किसानों को अब तक इसके प्रति जागरूक नहीं कर सके। तीन साल तक चले मृदा स्वास्थ्य परीक्षण अभियान में सरकार के लाखों रुपये खर्च हो गए।

फैक्ट फाइल

जिले में किसानों की कुल संख्या लगभग 3 लाख 50 हजार

कृषि विभाग के दावे के अनुसार 3.10 लाख किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित

जिले में खेती योग्य कुल भूमि 2 लाख 20 हजार हेक्टेयर

जिले में अधिकतर किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए जा चुके हैं। कार्ड में की गई संस्तुति के आधार पर ही उर्वरकों का प्रयोग करने के लिए किसानों को जागरूक भी किया जाता रहा है। अब जिले के आदर्श गांवों में शत-प्रतिशत किसानों के खेतों की मिट्टी की जांच कराकर उन्हें मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए जाने हैं। इसके लिए तैयारी चल रही है।

-यशराज सिंह, उप निदेशक कृषि प्रसार


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