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गोरखडिब्बी और थारू बस्ती के लोगों ने नाव के सहारे डाले वोट

शारदा नदी के पार बसे गोरखडिब्बी और थारू बस्ती के मतदाता नाव के सहारे मतदान करने के लिए ढाकिया तालुके महाराजपुर पहुंचे। नदी में बढ़ा पानी भी मतदाताओं के उत्साह में खलल नहीं डाल सका।

By JagranEdited By: Published: Wed, 24 Apr 2019 12:14 AM (IST)Updated: Wed, 24 Apr 2019 06:25 AM (IST)
गोरखडिब्बी और थारू बस्ती के लोगों ने नाव के सहारे डाले वोट
गोरखडिब्बी और थारू बस्ती के लोगों ने नाव के सहारे डाले वोट

पूरनपुर (पीलीभीत) : शारदा नदी के पार बसे गोरखडिब्बी और थारू बस्ती के मतदाता नाव के सहारे मतदान करने के लिए ढाकिया तालुके महाराजपुर पहुंचे। नदी में बढ़ा पानी भी मतदाताओं के उत्साह में खलल नहीं डाल सका।

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नेपाल बार्डर के नजदीक ग्राम पंचायत नगरिया खुर्दकलां के नादिया पार गोरखडिब्बी और थारू बस्ती दो गांव बसे हुए हैं। दोनों गांवों में लगभग अस्सी परिवार निवास करते हैं। 850 मतदाता हैं। दोनों गांवों में अनुसूचित जनजाति की अधिकांश लोगों की आबादी है। प्रत्येक चुनाव में इन दोनों गांवों के मतदाताओं के लिए इस पार बसे गांव ढकिया तालुके महाराजपुर में मतदान केंद्र बनाया जाता है। इस बार भी वहीं मतदान केंद्र बनाया गया। ग्रामीण नाव के सहारे मतदान केंद्र पर पहुंचे। हालांकि नदी का जलस्तर काफी बढ़ा चल रहा है लेकिन यहां के लोगों का मतदान के प्रति उत्साह फीका नहीं पड़ा। मंगलवार को सुबह से ही महिलाएं और पुरूष मतदान केंद्र पर नाव के सहारे पहुंचने लगे। शाम पांच बजे तक यहां 570 लोगों ने पहुंचकर मतदान किया। नाव के सहारे यह लोग शारदा के पौन एकड़ घाट से रोजाना इस पार से उस पार आते जाते रहते हैं। हर बार वन विभाग शारदा में नाव चलाने का ठेका देता है। ठेकेदार रोजाना आने वालों से छमाही किराया वसूलते हैं। इन दोनों गांवों के अलावा कोई इस पार से उस पार जाता है तो उससे रुपए लिए जाते हैं।

मतदान करने में हैं अग्रणी

नेपाल की शुक्ला फ्रांटा सेंचुरी के पास बसे भारतीय गांव गोरखडिब्बी और थारू बस्ती के लोग मतदान करने में काफी अग्रणी हैं। पिछली बार इन्होंने रिकार्ड तोड़ मतदान किया था। यहां 91 फीसदी वोट पड़े थे। जिले में नगरिया खुर्दकलां मतदान करने में अब्बल रहा था। इसबार भी यह लोग गेहूं की कटाई होने के बाबजूद नाव के सहारे मतदान करने पहुंचे। करना पड़ता है इंतजार

नादिया पार के मतदाताओं को नाव के सहारे वोट डालने के लिए इंतजार करना पड़ता है। एक नाव होने से यहां दिक्कत होती है। इस पार से सवारियां होने के बाद ही उस पार नाव जाती है। अगर यहां सड़क या पुल बना होता तो इनका उत्साह मतदान के लिए कुछ और ही होता फिर भी यह सभी दिक्कतों को दरकिनार कर वोट डालने के लिए पहुंचते हैं।


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