करने खेत खाली, जलाने लगे पराली
धान की कटाई के बाद पराली को नष्ट करने के लिए उसमें आग लगाने से पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है।
पीलीभीत : धान की कटाई के बाद पराली को नष्ट करने के लिए उसमें आग लगाने से पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचती है। इसीलिए पराली जलाने पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है लेकिन फिर भी किसान इसके प्रति जागरूक नहीं हो रहे हैं। जिला प्रशासन व कृषि विभाग फिलहाल रोकथाम नहीं कर पा रहा है। जिले में पराली जलाने का कार्य सबसे ज्यादा पूरनपुर व अमरिया तहसील क्षेत्र में होता है।
पूरनपुर : गत वर्ष कृषि विभाग की ओर से पराली जलाने पर जुर्माने का हवाला देकर मनरेगा से अवशेष खेत में अवशेष दबाए जाने की योजना बनी लेकिन परवान न चढ़ सकी। तराई क्षेत्र में लगभग सभी किसान पराली व फसलों के अवशेष जलाते हैं। हालांकि छोटे व मझोले किसान पराली को पशुओं के चारे के रूप में उपयोग करते हैं लेकिन अधिकता होने पर वह उसे खेत में बिखराकर आग लगा देते हैं। पिछले वर्ष जुर्माना लगाए जाने पर डायल सौ की टीम खेतों से उठता धुंआ देखकर पहुंचीं लेकिन जेब गर्म करने पर उसने मुंह मोड़ लिया। गुरुवार को सकरिया एवं ¨सहपुर के पास किसान खेतों में पराली जला रहे थे। पड़ोस के खेतों में आग लगने का अंदेशा भी था परंतु रोक लगाने का फरमान बेअसर दिखा। जिले में अब से बीस साल पहले तक धान की कटाई मजदूर हाथों से किया करते थे। जैसे जैसे कंबाइन से कटाई का चलन बढ़ता गया, उसी तरह पराली जलाने की समस्या भी बढ़ती गई। खेतों में पराली जलाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लागू हो चुका है। जीपीएस सिस्टम से पराली जलाए जाने के कुछ विजुअल प्राप्त हुए हैं। किसानों को पराली नहीं जलाने के प्रति जागरूक किया जाएगा। साथ ही पराली जलाने वालों को नोटिस देकर जल्द ही जुर्माना वसूलने की प्रक्रिया भी अपनाई जाएगी। पर्यावरण को हो रहे नुकसान ही अनदेखी नहीं की जा सकती। पराली जलाकर नष्ट करने के अलावा कई अन्य विकल्प है। सबसे अच्छा तो यही है कि उसे खेत में ही सड़ा दिया जाए, इससे खेत को हरी खाद मिलेगी।
-डॉ. अखिलेश कुमार मिश्र, जिलाधिकारी।