मशरूम की खेती से बदली गांव की दशा
अपना गांव और अपनी माटी। इस माटी पर अथक मेहनत के बावजूद दो वक्त की रोटी बमुश्किल है,लेकिन महिलाओं ने मशरूम की खेती से गांव की दशा बदल दी।
पीलीभीत : अपना गांव और अपनी माटी। इस माटी पर अथक मेहनत के बावजूद दो वक्त की रोटी बमुश्किल ही मिल पाती थी। परंपरागत खेती में कभी मौसम की मार तो कभी अन्य वजहें यह भी छीनने पर आमादा होतीं तो मजदूरी के लिए कस्बा या दूसरे शहरों का रुख करना पड़ता था। मुट्ठी भर महिलाओं ने नई सोच के साथ मशरूम उत्पादन शुरू किया। फिर तो स्वरोजगार की गाड़ी चल पड़ी। न केवल पलायन रुका, बल्कि गांव की अलग पहचान भी बनी। समूह बनाकर बदली तकदीर
मचवाखेड़ा जिले के बरखेड़ा ब्लॉक का गांव है। बात महज चार साल पहले की है। गांव में ज्यादातर किसान छोटी जोत वाले हैं। परंपरागत खेती-बाड़ी से बचत तो छोड़िए पूरे साल की रोटी भी मिलने में मुश्किल होती थी। मनरेगा से भी खास फायदा नहीं मिल पाता था। तब गांव की दस महिलाओं ने एकजुट होकर समूह बनाया। राष्ट्रीय आजीविका मिशन से जुड़ीं। मिशन के तहत मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण मिला। कुछ पुरुष भी साथ आए। नाबार्ड के सहयोग से लीवार्ड गोल्डन मशरूम किसान उत्पादक फर्म बनाकर रजिस्ट्रेशन कराया और मशरूम की खेती शुरू की। जुड़े हैं 200 से ज्यादा ग्रामीण
इस खेती से युवकों और छोटी जोत के किसानों को घर बैठे रोजगार मिला। महिलाओं के इस महावीर स्वयं सहायता समूह का सालाना टर्नओवर छह लाख रुपये से अधिक पहुंच चुका है। अध्यक्ष रामश्री व सचिव विमला देवी बताती हैं कि 200 से अधिक सदस्य खेती-बाड़ी से जुड़े हैं। हर सदस्य की प्रतिमाह औसतन एक हजार रुपये की अतिरिक्त आमदनी हो जाती है। कुंभ में स्टाल लगाने का मिला न्योता
इन कोशिशों का ही प्रतिफल है कि समूह को प्रयागराज में होने वाले कुंभ में स्टॉल लगाने का आमंत्रण मिला है। कंपनी इसकी व्यवस्था कराने में लगी है। गांव की महिलाओं ने दिशा बदलकर गांव की दशा बदली है। प्रेरक पहल है। कभी दूसरे शहरों में मजदूरी को जाने वाले किसानों को घर में रोजगार मिल रहा है।
-जगदीश चंद्र जोशी, बीडीओ मशरूम उत्पादन और इसके कारोबार से 200 से ज्यादा ग्रामीण जुड़े हैं। आने वाले दिनों में उत्पादन के साथ रोजगार में भी वृद्धि होगी। इससे सदस्यों की अतिरिक्त आमदनी भी होती है।
-महेंद्र गंगवार, सीईओ