बस में सीट के नीचे दबे रहे तीन मासूम
विजयलक्ष्मी को नहीं पता कि हादसा कैसे हो गया। उसे तो बस इतना मालूम है कि तेज धमाके की आवाज हुई। इसके बाद उसने खुद को सड़क किनारे घायल अवस्था में पड़ा पाया। वह जैसे तैसे उठी और फिर आंखें अपने दोनों मासूम बच्चों को तलाशने लगीं। सामने ही वह बस पलटी हुई पड़ी थी जिसमें कुछ देर पहले वह परिवार के साथ सफर कर रही थी। अपने घायल होने की पीड़ा भूलकर वह बच्चों को तलाशने लगी।
पीलीभीत,जेएनएन : विजयलक्ष्मी को नहीं पता कि हादसा कैसे हो गया। उसे तो बस इतना मालूम है कि तेज धमाके की आवाज हुई। इसके बाद उसने खुद को सड़क किनारे घायल अवस्था में पड़ा पाया। वह जैसे तैसे उठी और फिर आंखें अपने दोनों मासूम बच्चों को तलाशने लगीं। सामने ही वह बस पलटी हुई पड़ी थी, जिसमें कुछ देर पहले वह परिवार के साथ सफर कर रही थी। अपने घायल होने की पीड़ा भूलकर वह बच्चों को तलाशने लगी। उसके दोनों बच्चे बस के अंदर ही सीट के नीचे दबे पड़े थे। जैसे तैसे दोनों बच्चों को उसने निकाला। अब पति की चिता हुई। कुछ दूर पर ही वह भी घायल हालत में पड़े दिखे। गनीमत रही कि सीट के नीचे दबे पड़े होने के बावजूद बच्चों को ज्यादा चोट नहीं आई। ऐसे में विजयलक्ष्मी ने मन ही मन माता पूर्णागिरि का स्मरण किया। क्योंकि वह परिवार के साथ बेटे का मुंडन कराने वहीं जा रही थी।
लखनऊ के गांव मटेरा निवासी दीपक कुमार पेशे से राजमिस्त्री हैं। आठ महीने पहले जब पत्नी विजयलक्ष्मी ने बेटे को जन्म दिया, तभी दंपती ने निश्चय कर लिया था कि उसका मुंडन संस्कार मां पूर्णागिरि धाम में कराएंगे। इस बीच कोरोना महामारी का दौर चल पड़ा। अभी हाल में ही जब उन्हें पता चला कि नवरात्र में मां पूर्णागिरि के कपाट खुल रहे हैं। भक्तों को दर्शन पूजन की सुविधा मिलेगी, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अपनी मुराद पूरी करने के लिए यह परिवार पूर्णागिरि के लिए चल पड़ा। विजयलक्ष्मी की ननद किसी कारण नहीं आ पा रही थी, तो उसकी बेटी कामिनी, दामाद शिवम व उनके एक साल के बेटे अनुराग को साथ में ले लिया। जिला अस्पताल में भर्ती विजयलक्ष्मी उदास है। दोनों मासूम बच्चों को आंचल में समेटे वह यही सोच रही कि ये क्या हो गया। पड़ोस के बेड पर ही घायल पति की चिता सता रही है।