पंचपर्व पर कुम्हारी कला को लगे पंख
- कुम्हारी कला से जुड़े परिवारों में तेजी से घूम रहे चाक - मिट्टी के दीये तथा विभिन्न तरह के कुल्हड़ तैयार करने के काम में तेजी फोटो-18पीआइएलपी-2
जागरण संवाददाता, पीलीभीत : जिले में कुम्हारी कला के फिलहाल अच्छे दिन आ गए हैं। शासन की मंशा के अनुरूप जिला प्रशासन ने कुम्हारी कला को बढ़ावा देना तो पहले ही शुरू कर दिया था। अब त्योहारी सीजन में मिट्टी के दीये तथा विभिन्न तरह के कुल्हड़ की मांग एकाएक बढ़ा दी है। ऐसे में कुम्हारी कला से जुड़े परिवारों में सुबह से लेकर शाम तक मिट्टी के बर्तन बनाने का काम हो रहा है।
आधुनिकता की चकाचौंध के बीच त्योहारों पर कुम्हारी कला का अपना जलवा रहता है। हालांकि बीच में एक दौर ऐसा भी आया, जब दीपावली जैसे त्योहार पर तमाम लोग रोशनी के लिए बिजली की झालरों, मोमबत्तियों पर ही पूरी तरह निर्भर हो गए। मिट्टी के चंद दीये लोग सिर्फ पूजन के लिए भी खरीदने लगे थे। बाद में जब चाइनीज झालरों का क्रेज बढ़ा तो फिर कुम्हारी कला पर संकट आ गया लेकिन जल्द ही लोगों का चाइनीज झालरों से मोह भंग होने लगा। अब फिर लोग अपनी परंपराओं की ओर लौट रहे हैं। इसीलिए दिवाली पर मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ रही है। सिर्फ दीपावली ही नहीं बल्कि नवरात्र, दशहरा, करवाचौथ, धनतेरस, गोवर्धन पूजा, भैया दूज जैसे त्योहारों पर भी मिट्टी के दीये, बर्तन उपयोग किए जा रहे हैं। शहर के मुहल्ला गंगापुरी और निकट के गांव गौहनिया में कुम्हारी कला से जुड़े दर्जनों परिवार रहते हैं। इन दिनों उनके घरों पर सुबह से लेकर शाम तक मिट्टी के दीये, बर्तन बनाने का काम चल रहा है। एक ओर तेजी से घूमते चाक पर हुनरमंद अंगुलियां मिट्टी को मनचाहा आकार देने में तल्लीन हैं, तो गृहणी तैयार दीये, बर्तन धूप में रखकर सुखाने का काम कर रही है। बच्चे सूखकर आग में पक चुके बर्तनों पर रंग चढ़ा रहे हैं। इस तरह से पूरा परिवार मिलकर मिट्टी के दीये, बर्तन बनाने में एक-दूसरे का सहयोग कर रहा है। कारीगर रामरतन, जितेंद्र, दयाराम आदि बताते हैं कि यही सीजन है। कुछ कमाई हो जाएगी। त्योहारों के बाद तो कुछ दुकानों से कुल्हड़ के आर्डर ही मिल पाते हैं। ऐसे में अन्य कार्य करके परिवार का पालन पोषण करना पड़ता है।