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अलग-अलग होलिका से बंटता है समाज

पीलीभीत : भले ही शहर के एक-एक मुहल्ले में कई कई स्थानों पर होलिका रखी है लेकिन मानते सभी हैं कि एक ह

By JagranEdited By: Published: Wed, 28 Feb 2018 10:40 PM (IST)Updated: Tue, 06 Mar 2018 11:59 PM (IST)
अलग-अलग होलिका से बंटता है समाज
अलग-अलग होलिका से बंटता है समाज

पीलीभीत : भले ही शहर के एक-एक मुहल्ले में कई कई स्थानों पर होलिका रखी है लेकिन मानते सभी हैं कि एक ही स्थान पर होलिका हो तो सभी लोग उसमें शामिल कर होकर आनंद महसूस करते हैं।

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कई स्थानों पर होलिका रखे जाने से समाज बंट जाता है। कुछ लोग एक होलिका में शामिल होते हैं तो कुछ लोग दूसरी में। गायत्री परिवार के लोगों का तो मानना है कि होलिका दहन भी एक तरह का यज्ञ है। जैसे यज्ञ में एक ही स्थान पर तमाम श्रद्धालु आहुति देते हैं, उसी प्रकार होलिका में सभी ज्यों अर्पित करते हैं। ज्यों अर्पित करने से देवता प्रसन्न हो जाते हैं।

गायत्री प्रज्ञा पीठ के ट्रस्टी डॉ. दीनदयाल शर्मा कहते हैं कि जैसे जब किसी गांव में यज्ञ का आयोजन होता है तो सभी लोग उसमें शामिल हो जाते हैं। यही स्थिति शहरी क्षेत्र में मुहल्लों को होती है। तब होलिका पूजन और दहन अलग-अलग स्थानों पर क्यों होना चाहिए। होलिका दहन भी एक प्रकार का यज्ञ ही होता है। होली पर्व की मूल भावना में समाज की एकता का ¨बब है। अगर होली पर भी एकता का प्रदर्शन नहीं कर सकते तो लोगों की कमजोरी है। अन्य जागरूक लोगों का भी यही कहना है कि भले ही शहर के विभिन्न मुहल्लों में कई स्थानों पर होलिका रखी गई हैं लेकिन मजा तभी है, जब पूरा मुहल्ला किसी एक स्थान पर होलिका में शामिल हों, सभी लोग उत्साह से पूजन करें। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। अब अगर अलग-अलग स्थानों पर होलिका में शामिल होने वाले बंट जाएंगे तो आने वाली पीढ़ी मिलजुल कर त्योहार मनाने की परंपरा को भूल जाएगी। लोग आत्म केंद्रित होते जाएंगे। ऐसे में होली पर्व का उल्लास फीका पड़ जाएगा। दूसरी समस्या लकड़ी की है। भारी मात्रा में होलिका में लकड़ी जल जाएगी तो फिर अन्य कार्यों के लिए लोगों को लकड़ी मिलना मुश्किल हो जाएगा। वैसे भी जिस तादात में पुराने पेड़ साफ होते जा रहे हैं और नए उतने लग नहीं रहे। ऐसे में लोगों को अभी नहीं तो आगे चलकर एक होलिका के बारे में गंभीरता से सोचना पड़ेगा।

यूं तो लोगों को भागदौड़ भरी ¨जदगी में इतना समय ही नहीं मिल पाता कि सभी से मिल सकें। होली का पर्व यह अवसर प्रदान कर देता है लेकिन अलग-अलग होलिका रखे जाने से आपस में मिलन कम ही लोगों के बीच हो पाता है। एक ही मुहल्ले में रहते हुए अलग-अलग होलिका में शामिल होना अटपटा लगता है।

आशुतोष शर्मा, इमली चौराहा

जैसे-जैसे शहर का विस्तार होता गया, होलिका स्थल भी बढ़ते गए। मगर पुराने शहर में भी एक मुहल्ले में कई जगह होलिका रखी जाती है। होली सौहार्द का पर्व माना जाता है। सौहार्द तभी बढ़ता है, जब लोग आपस में मिलें। मिलन का स्थान होलिका से बढ़कर दूसरा नहीं हो सकता। लोगों के पास मिलने-जुलने की फुर्सत रहती है।

राजकुमार, साहूकारा

किसी भी मुहल्ले में एक होलिका स्थल पर्याप्त होता है। वहीं पर मुहल्ले के सभी लोगों को होलिका का पूजन करना चाहिए। पूरा मुहल्ला जब एक ही स्थान पर होलिका पूजन करता है तो इससे सामाजिक एकता का संदेश प्रकट होता है। इसी तरह की सामाजिक एकता के दम से लोग पूरे साल भर तक एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं।

राकेश कुमार, मुहल्ला दुर्गाप्रसाद

हम सब लोग तो बचपन से ही एक ही होलिका स्थल पर पूजन करने परिवार समेत जाते रहे हैं। इस परंपरा का पालन अभी तक करते आ रहे हैं। हमारे बचपन में होलिका स्थल पर पहुंचने वाले युवा अब बुजर्ग हो चले हैं और बच्चों की एक नई पीढ़ी आ गई है। होलिका स्थल एक ही रहे तभी अच्छा लगता है। तमाम लोग साथ रहते हैं।

सोनू अग्रवाल, मुहल्ला दुर्गाप्रसाद


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