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लॉकडाउन ने छीन लिया कमाने का हुनर

बेरोजगारी व गरीबी से तंग आकर ही युवा सैकड़ों किलोमीटर दूसरे प्रदेशों में मजदूरी कर नोट कमाने गए थे। नोट कमाने के लिए हुनर भी सीख लिया था। एक दिन में एक हजार तक की आमदनी कर किस्मत जाग गई थी परंतु कोरोना संक्रमण में लॉकडाउन होते ही उनके हाथों से रोजगार छिन गया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 26 May 2020 11:36 PM (IST)Updated: Tue, 26 May 2020 11:36 PM (IST)
लॉकडाउन ने छीन लिया कमाने का हुनर
लॉकडाउन ने छीन लिया कमाने का हुनर

जेएनएन, वाहनपुर (पीलीभीत) : बेरोजगारी व गरीबी से तंग आकर ही युवा सैकड़ों किलोमीटर दूसरे प्रदेशों में मजदूरी कर नोट कमाने गए थे। नोट कमाने के लिए हुनर भी सीख लिया था। एक दिन में एक हजार तक की आमदनी कर किस्मत जाग गई थी परंतु कोरोना संक्रमण में लॉकडाउन होते ही उनके हाथों से रोजगार छिन गया। मुसीबत के मारे उदास चेहरा लेकर युवा प्रवासी मजदूर गांव लौट आए हैं। अब उन्हें पुन: गरीबी और बेरोजगारी का दंश सहना पड़ रहा है। गांव आकर अब युवा प्रवासी मजदूर घर का चूल्हा जलाने के लिए रोजगार तलाशने में जुट गए। कोई गन्ने के खेत में गुड़ाई करने लगा है तो कोई गांव में ही मजदूरी कर गुजारा कर रहा है। मेहनत से सीखा सिलाई, दरी आदि का हुनर अब उनके कोई काम नहीं आ रहा।

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10 हजार से अधिक आबादी वाले गांव मीरपुर वाहनपुर पड़ोस के गांव मुसेली, राजू पुर कुंडरी महादेवा, रिछोला सबल समेत 2 दर्जन से अधिक ग्रामों में रहने वाले सैकड़ों की संख्या में युवा रोजी रोटी की तलाश में अच्छी कमाई करने के लिए अपने गांव व प्रदेश को छोड़कर राजस्थान, हरियाणा, पंजाब समेत कई प्रदेशों को चले गए थे। जहां जाकर उन्होंने कई महीनों तक सिलाई करना, कालीन तैयार करने समेत कई हुनर सीखे। अच्छी कमाई होने लगी थी। धंधा चलने लगा तो दिहाड़ी 500 से 1000 रुपये प्रति दिन तक पाने लगे। इन कामगारों को लगा कि शायद अब अच्छे दिन आ गए। धंधा इसी तरह चलता रहा तो अब गांव से दूरी बनाकर शहर में ही रहने के लिए मकान व अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेंगे। संजोए गए सपनों को ग्रहण उस समय लग गया जब कोरोना संक्रमण के चलते लाकडाउन होने से सारे धंधे बंद हो गए। घर लौटने के लाले पड़ गए। पैदल व वाहन से बमुश्किल गांव तक का सफर कर युवा अपने गांव लौटने लगे। गांव आकर युवाओं को फिर गरीबी और बेरोजगारी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि शासन द्वारा ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार मुहैया कराने के प्रयास शुरू कर दिए गए हैं परंतु इससे युवा संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं। ग्रामवासी अभी दूरी बनाए हुए हैं। परिजन भी उनसे अलग ही रह रहे हैं।

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गांव में जब अच्छा काम नहीं मिला तो पानीपत जाकर सिलाई करने लगा था। 1000 रुपये रोज की आमदनी होती थी। जिससे अच्छा गुजारा हो रहा था। अब गांव आकर यहां मजदूरी भी नहीं मिल रही है। गुजारा करने में काफी कठिनाई हो रही है।

मोहम्मद अफजल

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जयपुर में सिलाई कर एक दिन में 800 से 1000 रुपये तक की कमाई कर लेता था, जिससे हमारे पूरे परिवार का अच्छी तरह से गुजारा हो रहा था। लाकडाउन के चलते धंधा ठप हो गया। गांव आकर यहां कोई मजदूरी भी नहीं मिल रही है। मन इस बात से काफी परेशान है।

कलीम

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गांव में जब मजदूरी नहीं मिली तो जयपुर में जाकर जरी का कार्य किया था। इस धंधे में हजार से बारह सौ रुपये प्रतिदिन आमदनी हो रही थी। हर माह अच्छी खासी बचत भी हो रही थी लेकिन महामारी ने सब चौपट कर दिया है।

यासीन अंसारी

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हमारा परिवार पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। गांव में जब मजदूरी नहीं मिली तो साथियों के साथ पानीपत चला गया। जरी का काम करने लगा। वहां लगभग हजार रुपये प्रतिदिन की कमाई हो रही थी। लॉकडाउन के कारण धंधा बंद हो गया।

परवेज आलम


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