आपदा को बनाया रोजगार का अवसर
कोरोना संकट काल में लॉकडाउन के दौरान लोगों के रोजी रोटी के साधन बंद हो गए थे। घरों से बाहर निकलने पर पाबंदी थी। संसाधनों के अभाव में पेट की भूख मिटाने के लिए चूल्हे नहीं जल पा रहे थे उन कठिन परिस्थितियों में जनपद में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की ओर से गठित 131 स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं ने घरों पर ही मास्क तैयार कर न सिर्फ जीविका का साधन तलाश लिया बल्कि मुसीबत के समय परिवार के लिए बड़ा सहारा बनी।
पीलीभीत,जेएनएन : कोरोना संकट काल में लॉकडाउन के दौरान लोगों के रोजी रोटी के साधन बंद हो गए थे। घरों से बाहर निकलने पर पाबंदी थी। संसाधनों के अभाव में पेट की भूख मिटाने के लिए चूल्हे नहीं जल पा रहे थे उन कठिन परिस्थितियों में जनपद में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की ओर से गठित 131 स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं ने घरों पर ही मास्क तैयार कर न सिर्फ जीविका का साधन तलाश लिया बल्कि मुसीबत के समय परिवार के लिए बड़ा सहारा बनी।
कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौर पर जब तराई के आंचल में बसे जनपद के लोगों को 22 मार्च से 8 जून तक लॉकडाउन का सामना करना पड़ा तो उन्हें काफी दिक्कतें आई। विशेषकर जब व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद करा दिए गए। फैक्ट्रियां बंद होने पर लोग, मायूस होकर घरों को लौट आए और घरेलू खर्चा चलाने के लिए जब काम मिलना बंद हो गया तब चारों ओर संकट के बादल छा गए थे और मुसीबत का यह दौर कैसे गुजरेगा इसको लेकर लोग काफी परेशान होने लगे। गरीब परिवारों के घरों के चूल्हे जलने मुश्किल हो गए तो पीलीभीत जनपद में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गठित किए गए 131 समूहों की लगभग 917 महिलाओं को मास्क तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। प्रत्येक समूह में 10 से 12 महिलाएं थीं समूह में मात्र एक या दो सिलाई मशीन ही थी जो सुचार रूप से नहीं चल रही थी। महिलाओं ने मशीनों की मरम्मत कर मास्क तैयार करने का कार्य शुरू किया। संस्था की ओर से उन्हें 5 रुपया प्रति मास्क तैयार करने पर मेहनताना देने का वादा किया गया, परंतु बाद जब राष्ट्रीय सेवा कार्य की जिम्मेदारी सामने आई तो महिलाओं ने वह कर दिखाया जिसकी कल्पना भी करना मुश्किल था। स्वयं सहायता समूह की बरसों से जंग लगी पुरानी सिलाई मशीन खूब चलीं। महिलाओं ने दिन-रात एक कर मास्क तैयार किए उनकी मेहनत रंग लाई। समूह की ओर से हजारों की संख्या में मास्क तैयार किए गए। विकास खंड मुरारी की सोनी स्वयं सहायता समूह की ओर से 6080 मास्क तैयार किए गए जबकि अमरिया ब्लॉक के शुभ स्वयं सहायता समूह की ओर से प्रत्येक सदस्य ने चार हजार से लेकर पांच हजार मास्क तैयार किए। मास्क का भुगतान ग्राम पंचायतों की ओर से किया गया। जिलाधिकारी को 3000 व पुलिस अधीक्षक को 3000 तैयार मास्क दिए गए। लॉकडाउन के दौरान दोनों अधिकारियों ने अधीनस्थ अधिकारियों व कर्मचारियों को यह मासिक वितरित किए। इस तरह लॉकडाउन में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने एक दिन में 50 से 100 मास्क आसानी से तैयार कर लेती थी अर्थात घर बैठे ही 250 से 500 रुपये तक की आमदनी आसानी से हो रही थी। इस आमदनी से उनके परिवारों का खर्चा आसानी से चला।
हालांकि लॉकडाउन में अन्य महिलाओं ने भी स्वयं सहायता समूह का गठन कराने का प्रयास किया परंतु शासन की ओर से समूह के गठन पर रोक लगा दी गई थी इसीलिए वर्ष 2019 20 में गठित स्वयं सहायता समूह की महिलाओं से ही यह कार्य लिया गया। लॉकडाउन के उस कठिन दौर में जब लोगों के चेहरे काम न मिलने से मुरझा गए थे उस समय समूह की महिलाएं मास्क तैयार कर अपने परिवार के लिए सहारा बनी हुई थी। साहसिक कार्य की परिजन आज भी तारीफ करते नहीं थक रहे हैं। विभागीय अधिकारी भी महिलाओं के इस कार्य से खुश हैं साथ ही कठिन परिस्थितियों में इसी तरह मुकाबला करने के लिए उन्हें प्रेरित कर रहे हैं। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं की पुरानी मशीनों में अब जंग नहीं रह गई है वह रोज चल रही हैं। पहले मास्क तैयार किए थे। अब बच्चों की स्कूल ड्रेस भी तैयार करने लगी है। लगभग 52000 स्कूल ड्रेस समूह की महिलाओं की ओर से तैयार की जा चुकी है इस कार्य में जी जान से लगी हुई है। अभी भी लोगों को निशुल्क मास्क तैयार कर कर दे रही हैं।
देश में कोविड-19 वैश्विक महामारी से निपटने के लिए सरकार द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है। रोजी रोटी के साधन बंद न हों इसको लेकर भी पूरी सजगता बरती जा रही है। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को अधिक से अधिक सिलाई कार्य कर आत्मनिर्भर बनाने का कार्य किया जा रहा है जिससे कठिन परिस्थितियों का वे आसानी से मुकाबला कर सकें और अपने परिवार की जीविका घर बैठे ही चला सके।
- जगदीश चंद्र जोशी, परियोजना निदेशक राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन