इस बार मिट्टी के दीयों की बढ़ी मांग
ऐसा समय भी आ चुका है, जब दीपावली पर चाइनीज झालरों से घर और प्रतिष्ठान सजाने में लोग अधिक दिलचस्पी लेते थे,लेकिन इस बार मिंट्टी के दीयों की मांग बढ़ गई है।
पीलीभीत : ऐसा समय भी आ चुका है, जब दीपावली पर चाइनीज झालरों से घर और प्रतिष्ठान सजाने में लोग गर्व महसूस करते थे,लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। इस बार पर्व पर मिट्टी के दीयों की मांग पिछले वर्षों की अपेक्षा काफी बढ़ गई है। शहर के कई मुहल्लों के साथ ही आसपास के गांवों में सुबह से ही चाक चलने लगते हैं। कारीगर की अंगुलियां चाक पर मिट्टी को दीये में ढालने के लिए चलने लगती हैं। इस कार्य में प्रजापति बिरादरी के घरों में परिवार के कई-कई सदस्य जुटकर काम कर रहे हैं। जिससे बाजार की मांग के अनुरूप माल तैयार किया जा सके।
बीच में ऐसा भी दौर रहा, जब लोग सिर्फ पूजन के लिए शगुन के तौर पर मिट्टी के चंद दीये खरीदकर काम चला लेते थे। दीपावली पर मिट्टी के दीये रोशन करने की बजाय चाइनीज दीये, झालर आदि को खरीदना शान समझते थे। अब लोगों की समझ में आ गया है कि इस तरह के चाइनीज उत्पाद प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं। इसलिए मिट्टी के दीयों का उपयोग किया जाना ही बेहतर रहेगा। जिला प्रशासन के साथ ही शिक्षण संस्थाओं में भी मिट्टी के दीयों को बढ़ावा देने के प्रति जन जागरूकता बढ़ाने का अभियान चलाया गया। इसी का परिणाम है कि बाजार में मिट्टी के छोटे दीयों की मांग बढ़ गई है। साथ ही मिट्टी के बड़े दीये पूजन के लिए लोग खरीद रहे हैं। एक तो आज भी मिट्टी से बने दीये सस्ते पड़ते हैं और दूसरे इनकी खरीद से उन परिवारों की मदद हो जाता है, जो बड़े ही परिश्रम से उन्हें तैयार करते हैं। उन परिवारों के लिए रोजी-रोटी का एकमात्र साधन मिट्टी के दीये और बर्तन के साथ ही गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां बनाकर बेचना है।