रेलवे कर्मी नेमचंद को अतिविश्वास में मिला धोखा
नेमचंद ने चंद महीने की जान-पहचान को दोस्त बना लिया, उनके बारे में ज्यादा जानकारी जुटाई होती तो शायद धोखा नहीं मिलता।
पीलीभीत : नेमचंद ने चंद महीने की जान-पहचान को दोस्त बना लिया, उनके बारे में ज्यादा जानकारी जुटाने की भी कोशिश नहीं की। वह उन्हें अपने परिवार की सभी बातें सहजता से बता देता। इतना ही नहीं उन दोनों को अपने गांव में भी बुलाने लगा। अति विश्वास में उसे धोखा मिला। वह तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि दोनों दोस्त ही परिवार की जान के दुश्मन बन जाएंगे।
पीड़ित परिजनों के अनुसार करीब छह महीने पहले ही पूर्वोत्तर रेलवे के अटामांडा क्रा¨सग पर नेमचंद की नियुक्ति हुई थी। एक दिन यूं ही उस क्रा¨सग से गुजरते हुए खंजनपुर के गुलशेर पुत्र नबी शेर से मुलाकात हुई। फिर यह सिलसिला आगे भी चला और दोनों में दोस्ती हो गई। नेमचंद चंद महीने पहले तक अनजान लेकिन अब दोस्त बन गए आरोपित पर इतना भरोसा करने लगा कि घर-परिवार की हर बात उनसे साझा कर लेता। इसीलिए उसने रुपये जमा करने और प्लाट खरीदने की बात के साथ ही यह भी बता दिया कि सात लाख रुपये घर म ं रखे हैं। इतना सुनते ही आरोपित ने अपने मन क अंदर ही अंदर खौफनाक साजिश रच डाली।
तभी तो कहते हैं कानून के लंबे हाथ
अक्सर यह कहा जाता है कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं। कोई भी अपराधी ज्यादा दिनों तक कानून की आंखों में धूल झोंक कर बच नहीं रह सकता। अपराधी कितना भी चालाक हो लेकिन वह कोई न कोई ऐसा क्लू अवश्य छोड़ देता है, जिससे वह कानून की गिरफ्त से बच नहीं पाता। इस सामूहिक हत्याकांड की घटना में भी ऐसा ही हुआ।
आरोपित को इस बात की तो बखूबी जानकारी रही कि सात लाख की रकम जो घर में रखी है, उससे नेमचंद आठ जनवरी को बैनामा कराने जा रहा है। इससे पहले ही रकम हथियाने के लिए सात जनवरी को ही साजिश रचकर वारदात को अंजाम देने की तैयारी कर ली। मगर आरोपित यह भूल गए कि जिस मोबाइल के सहारे वह नेमचंद के संपर्क में रहता रहा है, वही मोबाइल नंबर के सहारे ही कानून के हाथ उसकी गर्दन तक पहुंच जाएंगे। एडीजी प्रेम प्रकाश के मुताबिक गिरफ्तार आरोपित की लोकेशन घटना की रात बेनीपुर में ही मिली थी, इसीलिए शक गहराया। मृतकों के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगाने से मजबूत तकनीकी साक्ष्य हाथ लगे और आरोपित की गिरफ्तारी हो सकी।