यातनाएं बर्दाश्त कीं लेकिन झुके नहीं सेनानी
आजादी के लिए सेनानियों और आंदोलनकारियों को जेल में भी यातनाएं सहनी पड़ीं।
पीलीभीत : आजादी के लिए सेनानियों और आंदोलनकारियों को जेल में भी यातनाएं सहनी पड़ीं। असहयोग आंदोलन, स्वदेशी अपनाओ, भारत छोड़ो आंदोलनों में विरोध करने पर कामरेड बृजबिहारी लाल और उनके साथियों पर अंग्रेजों ने कारागार में तमाम जुल्म किए। जेल जाने के बावजूद आंदोलन को कमजोर नहीं पड़ने दिया। लड़कर छीनी स्वतंत्रता।
जलियांवाला बाग कांड और रौलट एक्ट के विरोध में देश भर में विरोध तेज हो गया था। पीलीभीत और क्षेत्र में बृजबिहारी लाल इस आंदोलन के अगुवाकार बने थे। पूरनपुर के ग्राम नौगवा भुड़िया में 14 जून 1921 को जन्मे बृजबिहारी लाल 14 साल की उम्र में ही देश की आजादी की जंग में कूद पड़े थे। 1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ा था। बृजबिहारी अपनी साथियों की टोली लेकर पूरे क्षेत्र और जिले में अलख जगाने निकल पड़े थे।
तीन साल तक छिपकर जगाते रहे अलख
1942 से 1945 के तीन साल तक वेश बदलकर, जंगल में छिपकर स्वतंत्रता की अलख जगाते थे। 1945 में अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। तीन साल तक अलग-अलग बार जेल गए। सक्रिय भागीदारी पर जेल के भीतर भी जुल्म सहे। आखिरकार 15 अगस्त को वह सूरज खिला, जिसके लिए ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी के अंधेरे से लड़ते रहे।
सरकारी उपेक्षा का शिकार सेनानी का गांव
आजादी के बाद 1952 में बृजबिहारी लाल कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। गरीबों और वंचित लोगों के लिए हक के लिए संघर्ष शुरू कर दिया। आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सेनानी के संघर्ष को सरकार ने बिसरा दिया। गांव सरकारी उपेक्षा का शिकार है। सड़क अधूरी है तो बिजली अब तक नहीं है इस गांव में।