विकास में पर्यावरण की न हो अनदेखी
पीलीभीत : देश तरक्की की राह पर है। तकनीक का का लगातार विस्तार हो रहा है। शहरों क
पीलीभीत : देश तरक्की की राह पर है। तकनीक का का लगातार विस्तार हो रहा है। शहरों की तो बात छोड़िए गांवों की तस्वीर भी तेजी से बदल रही है। ऐसे में युवाओं की जिम्मेदारी काफी बढ़ जाती है। जिस तेजी से विकास हो रहा है, उसी गति से पर्यावरण की अनदेखी भी हो रही है। भविष्य में इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। ऐसे में अभी से चेत जाना चाहिए। विकास की दौड़ में पर्यावरण की अनदेखी बिल्कुल नहीं होना चाहिए। पर्यावरण की सुरक्षा पर ही मानव जीवन टिका है। जीवन को दांव पर लगाकर हासिल किया गया विकास आखिर किस काम आएगा। यह युवाओं की जिम्मेदारी है कि पर्यावरण के प्रति खुद जागरूक बने और साथ ही दूसरों को भी जागरूक बनाएं। अच्छी बात यह है कि दैनिक जागरण इस दिशा में लगातार जागरूकता बढ़ाने के प्रयास करता रहा है। अगर सरकार की ओर से पर्यावरण को एक विषय के तौर पर प्राइमरी से ही पाठ्यक्रम में शामिल कर दिया जाए तो और भी अच्छा रहेगा। बचपन से ही इसके प्रति विद्यार्थियों में जागरूकता के साथ ही जिम्मेदारी की भावना का विकास होने लगेगा। शिक्षा को तरक्की का द्वार माना जाता है लेकिन सरकारी शिक्षा की हालत किसी से छिपी नहीं है। आज स्थिति यह है कि सरकारी स्कूलों में उन्हीं परिवारों के बच्चे पहुंच रहे, जिनके अभिभावक गरीब हैं। वे प्राइवेट स्कूलों का खर्च नहीं उठा सकते। सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर सुधरना बहुत आवश्यक है। बाल शिक्षा अधिकार कानून तो बन गया लेकिन क्या संपूर्ण समाज को इसका फायदा मिल पा रहा है, इस ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जो रोजगार से जोड़ने वाली हो। अभी तो स्थिति यह है कि युवाओं को शिक्षा पूरी करने के बाद रोजगार के लिए भटकना पड़ता है। यह स्थिति बदलनी चाहिए। -गुरजीत ¨सह, छात्रग्राम पिपरिया करम (पीलीभीत)-
धन जोड़ने में दरकते जा रहे रिश्ते
पिछले 75 वर्षों से दौरान परिवार से लेकर समाज और देश में काफी बदलाव आया है। विकास के मामले में देश बहुत आगे बढ़ चुका है। लोगों की औसत आमदनी बढ़ी है। इसके साथ ही खर्च भी बढ़ गए। पहले लोगों की आवश्यकताएं सीमित हुआ करती थीं। परिवार संस्कारयुक्त होते थे। लोग एक-दूसरे का आदर करते थे लेकिन अब ये सब नहीं रह गया है। रिश्तों का मोल नहीं रह गया, सिर्फ पैसा ही सब कुछ है। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। अब तो परिवार का मतलब पति-पत्नी और छोटे बच्चे रह गए। बच्चे बड़े होते हैं तो एक अलग परिवार बन जाता है। संयुक्त परिवारों की तरह दादा-दादी-चाचा-चाची, भैया-भाभी के लिए एकल परिवार में कोई जगह नहीं रह गई। इसी कारण समाज में तमाम बुजुर्गों को एकाकी जीवन जीना पड़ रहा है। तरक्की के साथ ही संस्कार पीछे छूटते जा रहे हैं। आधुनिक शिक्षा नई पीढ़ी में संस्कार जगाने में सफल नहीं हो रही। पहले स्कूलों में पाठ्यक्रम की शिक्षा देने के साथ ही संस्कार भी बच्चों को सिखाए जाते थे। अब तो शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया है। जिसके पास पैसा है, वही अपने बच्चों को शिक्षित बना पा रहा है। राजनीति भी अब समाजसेवा नहीं रह गई। लोग पैसा कमाने के लिए राजनीति में जाते हैं। समाजसेवा का तो बहाना होता है। नेताओं के भ्रष्टाचार के किस्से आएदिन अखबारों की सुर्खियां बनते हैं। पहले के नेता ईमानदार और सिद्धांतों पर अडिग रहने वाले हुआ करते थे। वे लोगों के सामने आदर्श प्रस्तुत किया करते थे। आज के दौर में तो राजनीति में गिरावट आ गई है।
-राम अवतार मिश्र निरंजन कुंज कॉलोनी।