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सपनों में थी जान, गरीबी की बेड़ियां भी नहीं रोक सकी उड़ान

मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है/ पंखों से कुछ नहीं होता हौसले से उड़ान होती है। इसे सच साबित कर दिखाया है सूरजपुर कस्बा निवासी उमेश कुमार ने। गाजियाबाद में 17 जनवरी को आयोजित बाडी बिल्डिंग प्रतियोगिता में उमेश ने सिल्वर मेडल जीता है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Jan 2021 08:10 PM (IST)Updated: Mon, 18 Jan 2021 08:10 PM (IST)
सपनों में थी जान, गरीबी की बेड़ियां भी नहीं रोक सकी उड़ान
सपनों में थी जान, गरीबी की बेड़ियां भी नहीं रोक सकी उड़ान

जागरण संवाददाता, ग्रेटर नोएडा : मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसले से उड़ान होती है। इसे सच साबित कर दिखाया है सूरजपुर कस्बा निवासी उमेश कुमार ने। गाजियाबाद में 17 जनवरी को आयोजित बाडी बिल्डिंग प्रतियोगिता में उमेश ने सिल्वर मेडल जीता है। मूलरूप से प्रतापगढ़ के रहने वाला उमेश मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण करते हैं।

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महज 19 वर्ष की उम्र में आर्थिक तंगी के चलते इन्हें काम के लिए घर से बाहर निकलना पड़ा। बचपन से ही बाडी बिल्डर बनने का सपना अंगड़ाई ले रहा था। ऐसे में उन्होंने मजदूरी कर परिवार के भरण-पोषण के साथ ही कुछ वक्त अपने इस सपने को पूरा करने के लिए देना शुरू किया। दिनभर मजदूरी करने के बाद उन्होंने जिम में घंटों पसीना बहाने का फैसला लिया। ये उनका हिम्मत ही थी कि गरीबी की बेड़ियां भी उनके हौसले को पस्त नहीं कर पाई।

कहा जाता है कि बाडी बिल्डर के लिए डाइट काफी मायने रखती है, लेकिन इस सच को भी उन्होंने झुठला दिया। एक बाडी बिल्डर द्वारा लिए जाने वाले डाइट से वंचित रहने के बावजूद उन्होंने इसकी भरपाई अपने आम भोजन और मेहनत से की। उमेश पिछले दो महीने से जिम में घंटों पसीना बहाकर खुद के शरीर को बाडी बिल्डिंग प्रतियोगिता के लिए तैयार कर रहे थे। उमेश ने बताया कि वह कड़ी मेहनत कर देश-दुनिया की बाडी बिल्डिंग प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना चाहते हैं। वहीं उमेश के कोच व सूरजपुर में जिम संचालक मदन शर्मा का कहना है कि बाडी बिल्डिंग की खुमारी आज ज्यादातर युवाओं में छाई है। वे जल्द आकर्षक बाडी बनाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। युवाओं की इसी लालसा को देख अप्रशिक्षित कोच युवाओं को स्टेरायड की तरफ धकेल रहे हैं, जो गलत है।


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