आदेश में संशोधन के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगा प्राधिकरण
जागरण संवाददाता ग्रेटर नोएडा बिल्डरों को ब्याज दर में राहत देने के सुप्रीम कोर्ट के आदे
जागरण संवाददाता, ग्रेटर नोएडा: बिल्डरों को ब्याज दर में राहत देने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को संशोधित कराने के लिए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण याचिका दायर करेगा। प्राधिकरण की बुधवार को हुई 120 वीं बैठक में बोर्ड सदस्यों ने इस पर सहमति दे दी है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के माध्यम से हुई बोर्ड बैठक में यह मुख्य एजेंडा था। बोर्ड की अनुमति के बाद प्राधिकरण जल्द ही याचिका दायर करेगा।
याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण को आदेश दिया था कि वह बिल्डरों से एसबीआइ के एमसीएलआर के आधार पर करीब साढ़े आठ प्रतिशत ब्याज वसूल करे। कोर्ट ने इसे 2010 से लागू करने के आदेश दिए थे। कोर्ट के इस आदेश से प्राधिकरण को जबरदस्त झटका लगा। प्राधिकरण ने कोर्ट के पुनर्विचार याचिका दायर की। इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने प्राधिकरण को दूसरा झटका दे देते हुए बिल्डरों को चक्रवृद्धि ब्याज एवं दंडात्मक ब्याज से भी छूट देते हुए साधारण ब्याज वसूलने के आदेश दिए।
उधर ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर बैंक व वित्तीय संस्थाओं का 63 सौ करोड़ रुपये कर्ज है। प्राधिकरण को जमीन खरीदने के लिए करीब दो हजार करोड़ रुपये ऋण की जरूरत है, जबकि 132 बिल्डरों की प्राधिकरण को नौ हजार रुपये की देयता है। कोर्ट के आदेश से प्राधिकरण की हालत पतली है। प्राधिकरण सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने से बचता रहा। बोर्ड की सहमति के बाद प्राधिकरण आदेश में संशोधन कराने के लिए कोर्ट जाने की तैयारी में जुट गया है।
प्राधिकरण का तर्क है कि बिल्डरों को 2010 में जमीन दस से 11 हजार रुपये प्रति वर्गमीटर की दर से आवंटित की गई। आज जोन के आधार पर सबसे कम 28230 रुपये प्रति वर्गमीटर कीमत है। इसके अलावा बिल्डरों को शून्य काल आदि का लाभ मिल चुका है। प्राधिकरण का यह भी तर्क है कि जो बिल्डर समय से भुगतान करते रहे हैं, उन्हें इससे निराशा होगी। बिल्डरों ने निवेशकों से ब्याज समेत रकम वसूली, लेकिन परियोजना को पूरा नहीं किया। ऑडिट में यह भी सामने आया कि कई बिल्डरों ने निवेशकों से वसूली रकम का दूसरी जगह निवेश किया है। प्राधिकरण का यह भी कहना है कि जब वित्तीय संस्थाओं से उसे अधिक ब्याज दरों पर ऋण मिला है तो वह उससे कम दर कैसे वसूल सकता है, इसके अलावा एसबीआइ भी डिफाल्टर से चक्रवृद्धि ब्याज वसूल करता है। बोर्ड बैठक के बाद गेंद एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के पाले में पहुंचना तय है।