सरकारी अस्पताल के मेन गेट पर अतिक्रमण का आतंक
सेक्टर-30 स्थित जिला अस्पताल और सेक्टर-24 स्थित राज्य कर्मचारी बीमा निगम (ईएसआइसी) अस्पताल के मेन गेट पर अतिक्रमण का भारी आतंक है। इससे लोगों को आने-जाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यह अतिक्रमण सिर्फ एक दिन का नहीं है, बल्कि रोजाना दोनों अस्पताल के गेट के बाहर यही स्थिति देखी जा सकती है।
जागरण संवाददाता, नोएडा : सेक्टर-30 स्थित जिला अस्पताल और सेक्टर-24 स्थित राज्य कर्मचारी बीमा निगम (ईएसआइसी) अस्पताल के मेन गेट पर अतिक्रमण का भारी आतंक है। इससे लोगों को आने-जाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यह अतिक्रमण सिर्फ एक दिन का नहीं है, बल्कि रोजाना दोनों अस्पताल के गेट के बाहर यही स्थिति देखी जा सकती है। इसके बावजूद इसे हटाने का किसी भी ओर से कोई प्रयत्न नहीं किया जाता। इस तरह के अतिक्रमण को आखिर कौन संरक्षण दे रहा है। यह अपने आप में गंभीर सवाल है। अगर इन्हें किसी का भी संरक्षण नहीं मिल रहा होता तो रोजाना अस्पतालों के गेट पर इस तरह का नजारा देखने को नहीं मिलता, जहां गेट पर पहुंचते ही मरीज की सांसे फूल जाती हों। सोमवार को सड़क हादसे में घायलों को आपातकालीन स्थिति में गेट के अंदर जाने के लिए एंबलुेंस को भारी मशक्कत करनी पड़ी।
जिला अस्पताल के गेट के बाहर ठेले से लेकर, इलेक्ट्रानिक रिक्शे, आटो, बस व गाड़ियां अतिक्रमण के बड़े कारण हैं। अस्पताल के गेट पर ही धूल-मिट्टी से सना हुआ अनहाइजेनिक खाद्य व पेय मरीजों को बेचा जा रहा है, लेकिन इसकी फिक्र किसी को नहीं है। अस्पताल में एक तरफ मरीज इलाज कराने आ रहे हैं, दूसरी तरफ वह और उनके तीमारदार गेट के बाहर बिक रहे प्रदूषित खाद्य पदार्थो को खाकर और भी गंभीर बीमारी के शिकार हो रहे हैं। इन सबके बावजूद रोजाना जिला अस्पताल के गेट पर अतिक्रमण का आतंक बने रहना अस्पताल प्रबंधन से लेकर पुलिस व प्राधिकरण अधिकारियों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। अतिक्रमण की हद इस कदर है कि कई बार आपातकालीन स्थिति में आने वाले मरीज को गेट के अंदर जाने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ती है।
ईएसआइसी अस्पताल के बाहर तो एक कतार से वाहन गेट के बाहर खड़े दिखाई देते। प्रदूषित खाद्य बेचने वाले रेहड़ी, ठेलों की भरमार है। कई अतिक्रमण कारियों ने तो गेट के बाहर खाली जगह पाकर अपनी जागीर बना ली और सड़क को ही पार्किंग, गौशाला में तब्दील कर डाला। ऐसा नहीं है कि इस अतिक्रमण का पता अस्पताल प्रबंधन, पुलिस व प्राधिकरण अधिकारियों को नहीं है, लेकिन इन्हें बोलने या अतिक्रमण हटाने के लिए कोई जहमत मोल नहीं लेने और चुप रहना बहुत कुछ बताता है। इस अतिक्रमण का सबसे ज्यादा खामियाजा मरीजों को ही भुगतना पड़ता है। उम्मीद है कि मरीजों की तकलीफ को समझते हुए संबंधित अधिकारी जल्द ही इस पर कुछ ठोस कार्रवाई जरूर करेंगे।