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राजनीतिक रसूख पाने में झोंकी थी ताकत

अकूत संपत्ति के मालिक रवींद्र तोंगड़ ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में तैनाती के दौरान अपने अच्छे संबंध बना लिए थे। विभिन्न पार्टी में ऊंचे पदों पर बैठे नेता, बिजनेसमैन, इंडस्ट्रलिस्ट, बिल्डर सहित अन्य से रवींद्र की दोस्ती हो गई थी। प्राधिकरण में जीएम पद से इस्तीफा देने के बाद रवींद्र ने राजनीति में आने के लिए काफी-हाथ पैर मारे थे। लेकिन विरोधियों व खराब छवि के कारण उसकी दाल नहीं गली थी। प्राधिकरण से इस्तीफा देने के बाद रवींद्र को लगने लगा था अब और आगे बढ़ने लगे व अपने आप को बचाने के लिए राजनीतिक संरक्षण जरूरी है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 18 Sep 2018 08:53 PM (IST)Updated: Tue, 18 Sep 2018 09:23 PM (IST)
राजनीतिक रसूख पाने में झोंकी थी ताकत
राजनीतिक रसूख पाने में झोंकी थी ताकत

जागरण संवाददाता, ग्रेटर नोएडा:

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अकूत संपत्ति के मालिक रवींद्र तोंगड़ ने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में तैनाती के दौरान अपने अच्छे संबंध बना लिए थे। विभिन्न पार्टी में ऊंचे पदों पर बैठे नेता, बिजनेसमैन, इंडस्ट्रलिस्ट, बिल्डर सहित अन्य से रवींद्र की दोस्ती हो गई थी। प्राधिकरण में जीएम पद से इस्तीफा देने के बाद रवींद्र ने राजनीति में आने के लिए काफी-हाथ पैर मारे थे। विधानसभा चुनाव से पहले वह भाजपा में शामिल हो गए थे, लेकिन विरोधियों के कारण उनकी दाल नहीं गली थी। दादरी विधान सभा से उन्होंने भाजपा का टिकट मांगा था।

प्राधिकरण से इस्तीफा देने के बाद रवींद्र को लगने लगा था कि पैसे के दम पर और आगे बढ़ा जा सकता है। इसे देखते हुए उन्होंने तीन वर्ष पूर्व कई राष्ट्रीय पार्टी के बड़े नेताओं से संपर्क साधना शुरू कर दिया था। कुछ लोगों के प्रयास से रवींद्र ने पार्टी के एक वरिष्ठ नेता से मुलाकात की थी। वह कोई अच्छा पद चाहते थे। लेकिन पार्टी के ही कुछ लोगों ने उसमें अडं़गा लगा दिया था। उन्हें पूरा विश्वास था कि पैसों के दम पर वह राजनीति में स्थान हासिल कर लेंगे। टिकट के लिए रवींद्र ने पार्टी के दिल्ली स्थित कार्यालय में प्रतिदिन हाजिरी लगानी शुरू कर दी थी। पार्टी से उन्हें टिकट मिलने की चर्चा भी शुरू हो गई थी। रवींद्र व उनके करीबियों ने प्रचार-प्रसार भी शुरू कर दिया था। अंत में रवींद्र को निराशा हाथ लगी थी। चुनाव हो जाने के बाद रवींद्र ने पैसों के दम पर लाल बत्ती पाने का प्रयास भी शुरू किया। प्रयास आगे तक पहुंच गया था। लेकिन कुछ लोगों ने रवींद्र के अड़ंगा लगा दिया था। इस कारण अंतिम समय में उनका पत्ता कट गया।


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