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डेरी कारोबार के साथ 11 महिलाओं से शुरू हुई कंपनी ने 230 करोड़ तक पहुंचाया कारोबार

राधा व अंजनी का कहना है कि समूह से जुड़ने से लाभ हुआ है। पहले रोजमर्रा की जरूरतों के लिए सोचना पड़ता था। अब आय बढ़ी है तो दो वर्ष में दो से आठ पशु हो गए हैं। हर माह बीस हजार रुपये तक आमदनी हो गई है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 17 Sep 2022 05:41 PM (IST)Updated: Sat, 17 Sep 2022 05:41 PM (IST)
डेरी कारोबार के साथ 11 महिलाओं से शुरू हुई कंपनी ने 230 करोड़ तक पहुंचाया कारोबार
घूंघट हटाया, 230 करोड़ तक कारोबार पहुंचाया

मनीष तिवारी, ग्रेटर नोएडा : दो वक्त की रोटी और बच्चों के लिए अच्छे जीवन की उम्मीद में अपने गांव से पलायन बुंदेलखंड के अधिकतर गांवों की नियति रही है। मोमबत्ती, सोलर लाइट, अगरबत्ती, मिड डे मील पकाने जैसे कामों में दिन-रात जुट रहने के बाद भी गांवों की महिलाओं की आय महीने में एक से डेढ़ हजार रुपये से अधिक नहीं हो पा रही थी। बच्चों को अच्छी शिक्षा और उनकी जरूरतों को पूरा न कर पाने का मलाल महिलाओं को हर दिन कचोटता था। आज वही महिलाएं करोड़ों रुपये के वार्षिक टर्नओवर वाली कंपनी को प्रवीणता से संचालित कर रही हैं। इस महिला सशक्तीकरण का सशक्त उदाहरण है बुंदेलखंड की बलिनी मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी। डेरी कारोबार के साथ 11 महिलाओं से शुरू हुई कंपनी में लगभग तीन वर्ष के भीतर ही 41 हजार महिला सदस्य हैं। कंपनी वर्ष में 230 करोड़ रुपये का कारोबार कर रही है और इसकी पूरी कमान महिलाओं के हाथ में है।

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बलिनी अर्थात दुर्गा यानी शक्ति। मां से प्रेरणा लेकर ही कंपनी का यह नामकरण किया गया। कंपनी से जुड़ी महिलाएं आज अपने परिवार की सामाजिक, आर्थिक शक्ति बन चुकी हैं। इनका कारोबार उत्तर प्रदेश के साथ ही राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब व अन्य राज्यों तक विस्तारित हो चुका है। कंपनी निदेशक उमा कांतिपाल ने बताया कि बुंदेलखंड में अधिकतर गांवों में महिलाएं छोटे-छोटे काम करके परिवार की गुजर-बसर के लिए आमदनी का प्रयास करती हैं, लेकिन इसमें उन्हें बहुत कम पारिश्रमिक मिलता है। परिवार के खर्चे पूरे नहीं हो पाते। महिलाओं को सशक्त करने और आय का माध्यम बनाने के लिए बलिनी मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी की शुरुआत की गई। ग्रामीण आजीविका मिशन से भी सहायता मिली। इस काम के लिए महिलाओं को अलग से प्रशिक्षण व बाहर जाने की जरूरत नहीं थी।

डेरी कारोबार से महिलाओं की आमदनी पांच हजार महीना तक पहुंचने लगी तो आसपास की महिलाओं में भी कंपनी से जुड़ने की इच्छा जगी। महिलाओं ने गांव-गांव जाकर लोगों को भी जागरूक किया। धीरे-धीरे यह कारवां बढ़ता गया। राजकुमारी, अंजनी, आराधना समेत आज 703 गांव में 41 हजार महिलाएं बलिनी की सदस्य हैं। प्रत्येक गांव में कंपनी का संकलन केंद्र है। यहां एकत्र दुग्ध को चिलिंग सेंटर पहुंचाया जाता है। 11 गांवों पर एक चिलिंग सेंटर बनाया गया है। यहां से उत्पाद को बिक्री के लिए बाजार में भेजा जाता है। कंपनी दूध के अलावा घी आदि उत्पाद भी तैयार कर रही है। समूह की सदस्यों का कहना है कि महिलाओं को अपने साथ जोड़ने, दूध खरीदने के लिए गांव-गांव जाने, दूध की गुणवत्ता जांचने सहित सभी कार्य महिलाओं के हाथ में ही है। हर माह की तीन, 13 व 23 तारीख को महिलाओं के खाते में बिक्री का पैसा पहुंचता है।

प्रधानमंत्री से कर चुकी हैं मुलाकात

उमा कांतिपाल ने बताया कि डेरी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मुलाकात हुई है। व्यापार से आय बढ़ी तो अच्छा लगता है। जीवन की मुश्किलें कम हो गई हैं। समूह से जुड़ी अधिकतर महिलाओं के पास पहले एक या दो पशु थे, अब संख्या पांच से दस तक पहुंच गई है। कमाई से परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में आसानी हो गई है। बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल रही है।

मेहनत की कमाई पर होता है गर्व

राधा व अंजनी का कहना है कि समूह से जुड़ने से लाभ हुआ है। पहले रोजमर्रा की जरूरतों के लिए सोचना पड़ता था। अब आय बढ़ी है तो दो वर्ष में दो से आठ पशु हो गए हैं। हर माह बीस हजार रुपये तक आमदनी हो गई है।


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