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अतीत के आईने सेः जब दीवारों के रंग बनते थे प्रत्याशी की पहचान

13वीं विधानसभा चुनाव में दादरी सीट से भाजपा के प्रत्याशी रहे नवाब सिंह नागर के प्रत्याशी बनने पर सूर्यकांत शर्मा बताते हैं कि रातों रात सेक्टर-15 के गोल चक्कर पर आटे की लेई से पोस्टर लगाने के साथ दीवारों को अपने साथियों के साथ रंगा गया था।

By Mangal YadavEdited By: Published: Wed, 12 Jan 2022 03:36 PM (IST)Updated: Wed, 12 Jan 2022 03:36 PM (IST)
अतीत के आईने सेः जब दीवारों के रंग बनते थे प्रत्याशी की पहचान
अतीत के आईने सेः जब दीवारों के रंग बनते थे प्रत्याशी की पहचान

नोएडा [वैभव तिवारी]। अब वो बात कहां। हम तो लेई और लोहे के स्टेनसिल्स से शहर-गांव की दीवारों और चौराहे पर पार्टी और नेताओं को रातों रात छाप दिया करते थे। अब तो फोन पर उंगलियों के सहारे ही इंटरनेट मीडिया के माध्यम से ही लोगों को जोड़ा जा रहा है। उस दौर में बस जरूरत होती थी आटे की लेई, लोहे के कटे हुए स्टेनसिल्स और रंगों की। इससे पार्टी और नेता के नाम के साथ चिह्न दीवारों पर छप जाता था। वहीं पोस्टर चिपकाने का कार्य उस समय प्रचार का सबसे बड़ा माध्यम होता था। यह काम पूरी रात किया जाता था। सुबह सड़कों पर निकलने वाले लोगों को चिह्न और पार्टी नेता का नाम ही दिखाई देता था। रातों रात समूह में कार्यकर्ता की मेहनत से सैकड़ों दीवारों पर ये काम किया जाता था। यह संस्मरण सुनाते हैं डा. सूर्यकांत शर्मा जो कभी जनसंघ से जुड़े रहे।

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इसके बाद गौतमबुद्ध नगर की राजनीति में भाजपा के कई अहम पदों पर रहे। वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े विद्या भारती उच्च शिक्षण संस्थान में राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। 13वीं विधानसभा चुनाव में दादरी सीट से भाजपा के प्रत्याशी रहे नवाब सिंह नागर के प्रत्याशी बनने पर सूर्यकांत शर्मा बताते हैं कि रातों रात सेक्टर-15 के गोल चक्कर पर आटे की लेई से पोस्टर लगाने के साथ दीवारों को अपने साथी धर्मवीर पहलवान, मदनलाल गुप्ता, परमेश्वरी, अमित प्रकाश जोशी, राजेश शुक्ला और बच्चन के साथ रंगा गया था। वह बताते हैं कि बोरी में चना और गुड़ कार्यकर्ताओं के लिए नाश्ते के लिए आता था। कार्यकर्ताओं और नेताओं के पास पैसे भी नहीं होते थे। दीवारों पर पेंटिंग कार्यकर्ता ही करते थे। इस काम के लिए उन दिनों पेंटर नहीं लगाए जाते थे।

इसके बाद सुबह के समय जनसंपर्क शुरू किया जाता था। जिसमें टोलियां बनाकर चुनाव लड़ने के लिए लोगों से चंदा मांगने और जनसंपर्क करने के लिए कार्यकर्ता अलग-अलग क्षेत्रों में निकलते थे।

कार्यकर्ताओं का बदल गया काम का तरीका

सूर्यकांत शर्मा बताते हैं तब कार्यकर्ताओं के काम करने का तरीका दूसरा होता था। अब कार्यकर्ता वैचारिक तौर पर तो जुड़ते हैं, लेकिन पार्टी में कार्य करने वालों की जगह कार्यकर्ताओं की जगह काम करने वाले लोगों ने ले ली है। वह बताते हैं कि प्रोफेशनल डाक्टर के तौर पर उन्होंने पहली बार पार्टी का झंडा नोएडा शहर में थामा था। इसके बाद पार्टी से कई डाक्टरों को उन्होंने जोड़ा।


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