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विश्व हिंदी दिवस: युगांडा, यूके और मॉरीशस में हिंदी का किया प्रचार, विदेश में बढ़ाया भारत का मान

युगांडा अपने परिवार के साथ पहुंचे मनोज भावुक पूर्वी अफ्रीका की एक कंपनी में बतौर प्रोडक्शन इंजीनियर कार्यरत थे और 2005 तक वहां काम किया। विज्ञान के क्षेत्र से जुड़े होने के बावजूद हिंदी और साहित्य उन्हें अपनी ओर खींच लाया और वह कविताएं और गीत लिखने लगे।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sun, 10 Jan 2021 10:14 AM (IST)Updated: Sun, 10 Jan 2021 10:14 AM (IST)
विश्व हिंदी दिवस: युगांडा, यूके और मॉरीशस में हिंदी का किया प्रचार, विदेश में बढ़ाया भारत का मान
मनोज भावुक की फाइल फोटोः सौ. स्वंय

नोएडा [सुनाक्षी गुप्ता]। किसी भी देश की संस्कृति उसकी भाषा से होती है। भारत एक बहुभाषीय देश हैं जहां ज्यादातर भाषाओं की जननी संस्कृत रही है। जैसे जैसे वर्ष बीते संस्कृत का प्रचलन कम हुआ और हिंदी प्रभाव में आई और धीरे-धीरे देश के विभिन्न क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढ़ाया। आज हिंदी से भारत की दुनियाभर में पहचान है, लोग हिंदी बोलना, पढ़ना और लिखना चाहते हैं। लोगों की इसी चाहत को पूरा कर रहे हैं साहित्यकार मनोज भावुक।

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सन् 2003 में युगांडा अपने परिवार के साथ पहुंचे मनोज भावुक पूर्वी अफ्रीका की एक कंपनी में बतौर प्रोडक्शन इंजीनियर कार्यरत थे और 2005 तक वहां काम किया। विज्ञान के क्षेत्र से जुड़े होने के बावजूद हिंदी और साहित्य उन्हें अपनी ओर खींच लाया और वह कविताएं और गीत लिखने लगे। परदेश में रहकर देश के प्रति प्रेम ने उन्हें नए प्रयास करने की प्रेरणा दी। वह बताते हैं कि छुट्टियों के दिनों में जब अफ्रीकी लोग क्लब में जाते थे तो उन्हें भारतीय सिनेमा के कई गीत सुनाई तो देते लेकिन वह उनका अर्थ नहीं समझ पाते। ऐसे में वह अक्सर उन्हें इसका अर्थ समझाते। धीरे-धीरे उन्होंने विदेशी लोगों का समूह बनाया और उन्हें निश्शुल्क हिंदी भाषा सिखाना शुरू किया।

इसमें भारतीय सिनेमा और गीतों की अहम भूमिका रही। भाषा को रोचक व आसान तरीके से सिखाने का यह प्रयोग सफल हुआ। उनका सफर यहीं नहीं रुका और भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने युगांडा में बसे भारतीय परिवारों को जोड़ना शुरू किया। 70-80 परिवारों के साथ शुरू हुए समूह में हजारों लोग जुड़ने लगे। जिसमें पंजाव, बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और दक्षिण भारत के परिवार शामिल हुए और भारतीय त्योहार साथ मनाने की रीत शुरू हुई। मनोज भावुक ने इस बीच बच्चों के लिए खास सांस्कृतिक मंच की शुरुआत की, जिसमें बच्चे हिंदी में कविताएं और गीत सुनाते है, यह परंपरा वहां आज भी कायम है।

यूके और मॉरीशस में किया हिंदी का प्रचार

2006 में पहली बार यूके गए और गीतांजलि बहुभाषीय साहित्यिक समुदाय संस्था से जुड़कर हिंदी के साथ ही अनके बोलियां जैसे अवधि, ब्रज आदि को बढ़ावा देने पर कार्य किया। विदेश में जन्में भारतीय बच्चों को हिंदी की शिक्षा दी और उनकी प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने का कार्य किया। 2014 में इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशन्स की ओर से भारत के प्रतिनिधि के रूप में मॉरीशस गए और वहां हिंदी के प्रचार के लिए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कर प्रतिनिधित्व भी किया।

लॉकडाउन के अवधि में अचीवर जंक्शन आनलाइन प्लेटफॉर्म की शुरुआत की, जिसमें विभिन्न देशों में बसी भारतीय प्रतिभाओं को जोड़कर हिंदी भाषा में कविताओं, गीत, साहित्य से जुड़े 200 लाइव शो कराए गए। जिसमें जून से अबतक दो हजार से अधिक लोगों को जोड़ा जा चुका है।

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