मुंह पीछे करके क्यों इस प्रतिमा पर जल चढ़ाते हैं लोग, जानने के लिए पढ़िये- यह रोचक स्टोरी
दुजाना ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों में युवा अपनी गाड़ियों पर जेडीएस (जय दादी सती) लिखवाते हैं। दादी सती के नाम की टीशर्ट पहनते हैं। दादी की कसम बोलना यहां सत्यता व ग्रामीणों की पवित्रता का पैमाना माना जाता है।
ग्रेटर नोएडा [अजब सिंह भाटी]। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के पैतृक गांव बादलपुर के सटे दुजाना गांव में बना दादी सती का मंदिर करीब साढ़े चार सौ साल से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। मान्यता है कि जो भी यहां आकर सच्चे मन से माथा टेकता है उसके मन की मुराद पूरी हो जाती है। यहां होली के अगले दिन हर साल मेला लगता है। इस मेले में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नहरू से लेकर चौधरी चरण सिंह समेत कई बड़े दिग्गज नेता माथा टेक चुके हैं। पूर्व गृह मंत्री व गुर्जरों के दिग्गज नेता स्वर्गीय राजेश पायलट तो हर साल यहां माथा टेकने आया करते थे।
साढ़े चार सौ साल पुराना है मंदिर का इतिहास
मंदिर का इतिहास करीब साढ़े चार सौ साल पुराना है। ग्रामीणों के मुताबिक, यहां एक महिला सती हुई थी। ग्रामीण बताते हैं कि साढ़े चार सौ साल पहले दुजाना गांव से कुछ युवा अंग्रेजी सेना में भर्ती हुए थे। इनमें एक फौजी भगीरथ थे। जो लड़ाई के दौरान शहीद हो गए थे। जब इसकी खबर उनकी पत्नी रामकौर को लगी तो उन्होंने सती होने का फैसला लिया। रामकौर पति सती होने के लिए जंगल में पहुंच गई और सती हो गई। ग्रामीण बताते हैं कि इस दौरान रामकौर ने यह भी वरदान दिया था कि जो भी सच्चे मन से उनकी चिता की भूमि पर आकर कुछ मांगेगा उसकी वह मुराद पूरी हो जाएगी। मान्यता है कि उसके बाद से यहां जो भी सच्चे मन से मनोकामना मांगता है उसकी वह मुराद पूरी हो जाती है।
ग्रामीणों ने कराया है भव्य मंदिर का निर्माण
दुजाना ही नहीं, बल्कि आसपास के गांवों समेत दूर दराजों से लोग आकर पूजा करते हैं। ग्रामीणों उन्हें दादी सती कहकर पुकारते हैं। मौजूदा समय में ग्रामीणों ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण करा दिया है। जिसमें दादी सती की प्रतिमा के साथ अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति भी स्थापित की गई है। यह मंदिर दादी सती के मंदिर के नाम से जाना जाता है।
होली के बाद लगता है मेला
होली के बाद हर तिलहेड़ा को मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें यूपी के अलावा हरियाणा, राजस्थान के कलाकार आकर कार्यक्रम पेश करते हैं। यह मेला हर साल लगता है। लोगों के खाने-पीने की स्टॉल से लेकर बच्चों के मनोरंजन के लिए झूला आदि डाले जाते हैं। दूर-दराज से आकर लोग प्रसाद चढ़ाते हैं। मेले को ग्रामीण किसी उत्सव की तरह मनाते हैं। मेला देखने के लिए गांव में रिस्तेदारों का भी आगमन होता है।
मंदिर के समीप पंडित नहरू ने रखी थी इंटर कॉलेज की नींव
पंडित जवाहर लाल नहरू दादी सती पर माथा टेकने आए थे। ग्रामीण बताते हैं कि गांव स्थित गांधी इंटर कॉलेज की नींव पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नहरू ने ही रखी थी। मेले के दिन ही स्कूल प्रबंधन गांधी इंटर कालेज की वर्षगांठ भी मनाता है। यह परंपरा पंडित नेहरू के कार्यकाल से चली आ रही है, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह समेत कई अन्य दिग्गज नेता भी आ चुके हैं।
गाड़ियों पर लिखा होता है जेडीएस
दुजाना ही नहीं, बल्कि आसपास के गांवों में युवा अपनी गाड़ियों पर जेडीएस (जय दादी सती) लिखवाते हैं। दादी सती के नाम की टीशर्ट पहनते हैं। 'दादी की कसम' बोलना यहां सत्यता व ग्रामीणों की पवित्रता का पैमाना माना जाता है। आसपास के गांव बादलपुर, अच्छेजा, सादोपुर, बिसनूली, झाल, सादुल्लापुर समेत आसपास के 27 गांवों में दादी की बड़ी मान्यता है।
कचैड़ा गांव के निवासी आज भी नहीं आते मूर्ति के सामने
ग्रामीणों के मुताबिक, दादी के सती होने की खबर इलाके में आग की तरह फैल गई, इसके बाद आसपास के लोग उन्हें उन्हें सती होता देखने के लिए जा पहुंचे। कुछ लोग इसे ढोंग बताने लगे। बताया जाता है कि गांव के समीप कचैड़ा गांव का एक व्यक्ति हाथ में फरसा लेकर आया था कि अगर वह सती नहीं हुई तो उसकी फरसे से हत्या कर दी जाएगी। इस दौरान क्रोधित रामकौर ने उस व्यक्ति को जमकर लताड़ा। ग्रामीण बताते हैं कि कचैड़ा गांव के लोग आज भी दादी सती की प्रतिमा के आगे से नहीं, बल्कि मुंह पीछे करके जल चढ़ाते हैं। पिछले 400 सालों से चली आ रही यह परंपरा आज भी कायम है।
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