बीज से बनी मल्च फिल्म पर्यावरण संरक्षण संग खेती की लागत भी करेगी कम
मल्चिंग विधि से खेती को देश में लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें किसानों के लिए अनुदान की भी व्यवस्था है। जिले के उद्यान अधिकारी किसानों को जानकारी देकर इस विधि के प्रयोग को प्रोत्साहन देते हैं।
अजय चौहान, नोएडा : पौधों की अच्छी वृद्धि, विशेषकर फल और सब्जियों की फसलों के लिए मल्च फिल्म यानी पलवार का प्रयोग बढ़ रहा है। पारंपरिक तरीकों से आधुनिकता की तरफ बढ़ती कृषि के हिसाब से यह आवश्यक और उपयोगी भी है, लेकिन पालीथिन के रूप में बना यह पलवार पर्यावरण के लिए उतना ही हानिकारक है। इसका निस्तारण करने का कोई विकल्प किसानों के पास नहीं रहता। किसानों की इसी परेशानी और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देते हुए ऐसी मल्च फिल्म तैयार की गई है जो प्रयोग करने के बाद मिट्टी में ही खाद की तरह मिल जाएगी। एमिटी विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डा. हर्षा खर्कवाल ने टेक्निकल यूनिवर्सिटी आफ म्यूनिख के साथ मिलकर यह बायोडिग्रेडेबल मल्च फिल्म तैयार की है। इसकी कीमत कम होने से कृषि की लागत कम होगी जिससे किसानों को लाभ होगा।
छह दिन में होगी नष्ट
इसे नोवल मल्च फिल्म नाम दिया गया है। मिट्टी में दबाने पर यह मल्च फिल्म छह दिन में स्वत: ही नष्ट हो जाएगी। जिससे न तो भूमि की उर्वरा शक्ति क्षीण होगी, न ही पर्यावरण को कोई नुकसान होगा। साधारण मल्च फिल्म कम घनत्व वाली पालीथिन से बनी होती है, जो आसानी से अपक्षय नहीं होती है। वहीं नोवल मल्च फिल्म फलदार पौधों के बीज से निकाले गए पालीसेकेराइड और रिसाइकिल योग्य प्लास्टिक का उपयोग करके बनाई जाती है। इसमें प्लास्टिक का प्रयोग नहीं होता है। ऐसे में खेत में उपयोग होने के बाद यह मिट्टी में मिल जाती है। किसानों को इसे हटाने की समस्या से भी मुक्ति मिल जाएगी।
डा. हर्षा खर्कवाल बताती हैं कि प्लास्टिक युक्त मल्च फिल्म महंगी (150 से 180 रुपये प्रति किलोग्राम) होती है, जबकि नोवल मल्च फिल्म की कीमत कम है। इसकी कीमत 100 से 120 रुपये प्रति किलोग्राम तक रहेगी। इसे अगले वर्ष जुलाई तक बाजार में लाने की तैयारी है। बीआइएस द्वारा तय मानकों के अनुरूप ही इस नोवल मल्च फिल्म को तैयार किया गया है।
प्रयोगशाला में काम करती डा. हर्षा खर्कवाल। जागरण
यह होती है मल्चिंग
खेत या क्यारी में खुली मिट्टी को ढकने की प्रक्रिया को मल्चिंग कहते हैं। इसको ढकने के लिए जिस आवरण का प्रयोग करते हैं, उसे मल्च कहा जाता हैं। यह एक झिल्लीनुमा लंबी शीट होती है। पहले पुआल व लकड़ी को प्राकृतिक मल्च फिल्म की तरह प्रयोग किया जाता था। अब इसका स्थान कृत्रिम मल्च फिल्म ने ले लिया है।
इसलिए होता है प्रयोग
मल्च फिल्म का उपयोग खेत और पालीहाउस में होता है। मिट्टी में नमी बनी रहती है। मिट्टी से पानी का वाष्पोत्सर्जन नहीं हो पाता है। पौधों की बेहतर वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण मिलता है। यह खरपतवार को रोकती है। पौधे लंबे समय तक सुरक्षित रहते हैं। ज्यादा गर्मी में मिट्टी में ठंडक रहती है और वर्षा नहीं होने पर भी पौधे नहीं सूखते। खासकर फल और सब्जी की खेती में इसका प्रयोग होता है।
जल संरक्षण के साथ प्रदूषण से बचाव
बायोडिग्रेडेबल मल्च फिल्म प्लास्टिक कचरे के निस्तारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मिट्टी को प्रदूषित होने से बचाती है। साथ ही पानी की खपत को कम करने में मदद करती है। इस विधि से खेती में करीब 60 से 65 प्रतिशत पानी की बचत होती है। ऐसे में यह पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है।
सरकार भी दे रही बढ़ावा
मल्चिंग विधि से खेती को देश में लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें किसानों के लिए अनुदान की भी व्यवस्था है। जिले के उद्यान अधिकारी किसानों को जानकारी देकर इस विधि के प्रयोग को प्रोत्साहन देते हैं। इसका बाजार लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में यह नवोन्मेष किसानों के साथ निर्माताओं के लिए भी मददगार साबित हो सकता है।