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बेजुबानों की सेवा से होती है सुबह की शुरुआत, हरेंद्र और मंजीत की नेक पहल की सभी कर रहे तारीफ

जैतपुर गांव में दशकों पुराना तालाब है। यहां बड़ी संख्या में मछलियां हैं आस-पास के पेड़ों पर सैकड़ों की संख्या में बंदर रहते हैं। हरेंद्र व मंजीत अपनी गाड़ी में चारा व खाने का सामान लेकर पिछले पांच माह से प्रतिदिन सुबह छह बजे तालाब के पास पहुंच जाते हैं।

By Prateek KumarEdited By: Published: Tue, 22 Sep 2020 05:10 PM (IST)Updated: Tue, 22 Sep 2020 05:33 PM (IST)
बेजुबानों की सेवा से होती है सुबह की शुरुआत, हरेंद्र और मंजीत की नेक पहल की सभी कर रहे तारीफ
हरेंद्र भाटी और मंजीत सिंह बंदरों को खाना खिलाते हुए- फोटो- आलोक सिंह

ग्रेटर नोएडा, मनीष। लॉकडाउन की स्थिति में सभी चीजें बंद हो गई। व्यक्ति पूरी तरह से घरों में कैद हो गया। आम व्यक्ति किसी प्रकार से दो रोटी का जुगाड़ कर लेता था, लेकिन बेजुबानों के सामने खाने का संकट खड़ा हो गया। बेजुबानों के दर्द को समझ हरेंद्र भाटी व मंजीत सिंह ने उन्हें चारा व खाना उपलब्ध कराना शुरू किया। पशुओं के प्रति पांच माह पूर्व शुरू हुआ प्यार निरंतर जारी है। पशुओं को चारा व खाना उपलब्ध कराने में समाज के अन्य लोगों के द्वारा भी आर्थिक सहयोग दिया जाता है।

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गाय, कुत्ता, बंदर आदि जानवर भी समाज के ही अंग है। होटल, सब्जी मंडी, हास्टल, घरों व अन्य स्थानों पर बचने वाला खाना व सब्जी उनका आहार होते हैं। लॉकडाउन में पशुओं के सामने खाने का संकट खड़ा हो गया।एक्टिव सिटीजन टीम के सदस्य मंजीत सिंह व हरेंद्र ने पशुओं के लिए चारा, कुत्तों के लिए रोटी, दूध, ब्रेड आदि चीजों की व्यवस्था की। जहां भी पशु दिख जाते उन्हें भोजन कराते।

जैतपुर गांव में दशकों पुराना तालाब है। तालाब में बड़ी संख्या में मछलियां हैं। साथ ही आस-पास के पेड़ों पर सैकड़ों की संख्या में बंदर रहते हैं। आस-पास कुत्ते व गाय भी रहते हैं। हरेंद्र व मंजीत अपनी गाड़ी में चारा व खाने का सामान लेकर पिछले पांच माह से प्रतिदिन सुबह छह बजे तालाब के पास पहुंच जाते हैं।

बेजुबान उनकी आहट मिलते ही प्रसन्न हो जाते हैं। मंजीत सिंह बताते हैं पशुओं के प्रति प्यार जाग गया है। उनकी सेवा से दिल को सुकून मिलता है। गाय को चारा, आटा, बंदरों को केला, कुत्तों को ब्रेड व दूध व मछली को भी ब्रेड खिलाया जाता है। हरेंद्र बताते हैं पशुओं को चारा खिलाना अब दिनचर्या का एक हिस्सा बना गया है। सुबह लगभग छह बजे तक चारा व खाने का सामान लेकर पशुओं के बीच पहुंच जाते हैं। चारा व खाने के लिए समाज के लोगों के द्वारा भी आर्थिक सहयोग उपलब्ध कराया जाता है।

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